
नई दिल्ली : आँखों के बिना जीवन का कोई रंग नहीं, लेकिन इसे सहेज कर रखने में भारतीय अन्य देशों से पीछे हैं। बॉश-लांब द्वारा किए गए अंतराष्ट्रीय अध्ययन के मुताबिक आंखों की देखभाल को लेकर भारतीय अधिक जागरूक नहीं हैं। 43 प्रतिशत भारतीयों ने जिंदगी में कभी आंखों की जांच नहीं कराई।
इस अध्ययन में 11 देशों के 11 हजार लोगों को शामिल किया गया। ग्लोबल बैरोमीटर ऑफ आई हेल्थ 2012 के मुताबिक आंखों की रोशनी को वे खोना नहीं चाहते, लेकिन आंखों से अधिक से ब्लडप्रेशर की जांच और वजन को लेकर गंभीर हैं। 68 प्रतिशत भारतीय आंखों की जांच सिर्फ इसलिए नहीं कराते, क्योंकि उनका मानना है कि आंखें जांच कराने के बाद चश्मा लगना तय है। केवल दस प्रतिशत भारतीय ही आँखों के स्वास्थ को लेकर जागरूक हैं, जबकि केवल 15 प्रतिशत लोग बेहतर क्वालिटी के चश्में पहनते हैं। ग्लोबल आई हेल्थ सर्वे मं 58 प्रतिशत वीडीटी (वीडियो डिस्प्ले टरर्मिनल)ऑपरेटर, 30 प्रतिशत कारपोरेट सेक्टर के कर्मचारी और 12 प्रतिशत चिकित्सा जगत के लोगों को शामिल किया। अध्ययन में ब्राजील, चीन, जर्मनी, फ्रांस, भारत, इटली, जापान, रूस, स्पेन, यूके और अमेरिका के लोगों ने आंखों के स्वास्थ्य संबंधी 20 बिन्दुआें पर प्रश्न किए गए।
आंखों की पांच लापरवाही
-परेशानी पर ही कराते हैं जांच
-नियमित स्वास्थ्य जांच में नहीं शामिल आंखें
– आंखें बताती हैं खून में ग्लूकोज का पता, नहीं है जानकारी
-कंप्यूटर पर काम करते हुए नहीं रखते सुरक्षा का ध्यान
-देर रात तक अधिक काम और आंखों के सुरक्षा को लेकर लापरवाह
सर्वे के अन्य आंकड़े
-आंख जांच न कराने वाले 43 प्रतिशत में 69 के अनुसार उनकी आंखें ठीक हैं, जबकि 40 प्रतिशत का कहना है आंखें जांच से चश्मा पहनना पड़ेगा।
-58 प्रतिशत मानते हैं कि वे देख सकते हैं तो उनकी आंखें स्वस्थ है।
-85 प्रतिशत भारतीय अच्छी क्वालिटी के चश्में नहीं पहनते
-केवल 28 प्रतिशत मानते हैं कि प्रदूषण भी कर सकता है आंखें खराब
क्या कहते हैं डॉक्टर
आंखों की देखभाल को लेकर लोगों में जागरुकता बढ़ी हैं, लेकिन जांच को लेकर जागरूकता नहीं है। कंप्यूटर पर चार से पांच घंटे लगातार काम करते हैं तो आंखों की जांच जरूरी ।