एक क्लिक में पढ़ें सुप्रीम कोर्ट में ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर आज क्या-क्या हुआ

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लयूएस) को मिल रहे आरक्षण पर अपनी मुहर लगा दी है। ये आरक्षण आगे भी लागू रहेगा। पांच जजों की बेंच ने 3-2 से ईडब्लयूएस आरक्षण के पक्ष में फैसला सुनाया। तीन जजों ने आरक्षण के लिए संविधान के 103वें संशोधन को सही ठहराया। वहीं, चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट ने इस आरक्षण के खिलाफ अपनी राय रखी। जानें पूरा फैसला, किस जज ने क्या कहा और उसका क्या मतलब है?

  • किन-किन जजों ने पक्ष में और किसने विपक्ष में सुनाया फैसला? 

जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दिनेश महेश्वरी और जस्टिस बेला त्रिवेदी ने ईडब्लयूएस आरक्षण के पक्ष में फैसला सुनाया। इन जजों ने माना कि ये आरक्षण संविधान के खिलाफ नहीं है, बल्कि सभी को समान अवसर प्रदान करने का मौका है। उन्होंने कहा कि आरक्षण को लेकर जो संशोधन किया गया है, वो संविधान की मंशा के अनुरूप है। वहीं, चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट ने इसके खिलाफ अपनी राय रखी।

  • जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने क्या कहा?

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने ईडब्लयूएस आरक्षण के पक्ष में कहा, ‘हमने समानता का ख्याल रखा है। क्या आर्थिक कोटा आर्थिक आरक्षण देने का का एकमात्र आधार हो सकता है। आर्थिक आधार पर कोटा संविधान की मूल भावना के खिलाफ नहीं है। यह किसी भी तरह से आरक्षण के मूल रूप को नुकसान नहीं पहुंचाता है।’ जस्टिस माहेश्वरी ने संविधान के 103वें संशोधन को सही ठहराया है।

  • जस्टिस बेला त्रिवेदी ने क्या कहा?

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी जस्टिस माहेश्वरी के टिप्पणी को सही ठहराया। उन्होंने कहा कि मैं जस्टिस माहेश्वरी के निष्कर्ष से सहमत हूं। उन्होंने कहा कि एससी/एसटी/ओबीसी को पहले से आरक्षण मिला हुआ है। उसे सामान्य वर्ग के साथ शामिल नहीं किया जा सकता है। संविधान निर्माताओं ने आरक्षण सीमित समय के लिए रखने की बात कही थी, लेकिन 75 साल बाद भी यह जारी है।

  • जस्टिस पारदीवाला ने क्या कहा?

जस्टिस जेबी पारदीवाला ने जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस बेला के उठाए बिंदुओं पर सहमति जताते हुए कहा, ‘आरक्षण का अंत नहीं है, यह साधन है, इसे निहित स्वार्थ नहीं बनने देना चाहिए।’ उन्होंने आगे कहा, ‘आरक्षण को अनिश्चितकाल के लिए नहीं बढ़ाना चाहिए। ये बड़े स्तर पर लोगों को फायदा पहुंचाने का एक जरिया है। इसलिए मैं EWS आरक्षण के लिए हुए संशोधन के पक्ष में हूं।’
जस्टिस रविन्द्र भट ने जताई असहमतिआर्थिक आधार पर आरक्षण फैसला देते हुए जस्टिस रविन्द्र भट ने असहमति जताई। उन्होंने कहा, ‘आबादी का एक बड़ा हिस्सा SC/ST/OBC का है। उनमें बहुत से लोग गरीब हैं। इसलिए, 103वां संशोधन गलत है। 50 प्रतिशत से ऊपर आरक्षण देना ठीक नहीं होगा। अनुच्छेद 15(6) और 16(6) रद्द होने चाहिए।
चीफ जस्टिस भी जस्टिस भट के फैसले से सहमत चीफ जस्टिस यूयू ललित ने भी आर्थिक आधार पर आरक्षण का विरोध किया। उन्होंने कहा कि मैं जस्टिस रविंद्र भट के फैसले से सहमत हूं। उन्होंने कहा, 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पार करना मूल ढांचे के खिलाफ है। ये संविधान के मूल भावना के विपरीत है।

  • क्या है पूरा मामला, समझिए

आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए केंद्र सरकार ने संविधान में 103वां संशोधन किया था। इसकी वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। पांच जजों की पीठ ने 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। पांच सदस्यीय संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रवींद्र भट, बेला एम त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला शामिल थे। मामले में मैराथन सुनवाई लगभग सात दिनों तक चली। इसमें याचिकाकर्ताओं और (तत्कालीन) अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ईडब्ल्यूएस कोटे को लेकर अपनी दलीलें रखीं।

याचिकाकर्ताओं ने क्या दलील दी?
 याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि आरक्षण का मकसद सामाजिक भेदभाव झेलने वाले वर्ग का उत्थान था, अगर गरीबी आधार है तो उसमें एससी-एसटी-ओबीसी को भी जगह मिले।
  • ईडब्लयूएस कोटा 50 फीसदी आरक्षण की सीमा का उल्लंघन है।
  • सरकार ने क्या पक्ष रखा? याचिकाकर्ता के दावों पर सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा। सरकार की ओर से कहा गया कि ईडब्लयूएस तबके को समानता का दर्जा दिलाने के लिए ये व्यवस्था जरूरी है। केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि इस व्यवस्था से आरक्षण पा रहे किसी दूसरे वर्ग को नुकसान नहीं है। 50% की जो सीमा कही जा रही है, वो कोई संवैधानक व्यवस्था नहीं है, ये सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से आया है। ऐसे में ये कहना गलत होगा कि इसके परे जाकर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
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