
- सबसे बड़ी महामारी, त्रासदी।
- केंद्र राज्य सरकारों को मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध करवायेगी
- नेजन वैक्सीन पर भी काम चल रहा है। ताकि वैक्सीनेशन की प्रक्रिया और बढ़े।
- अभी तक 23 करोड़ से ज्यादा डोज दिये जा चुके हैं।
- दो मेड इन इंडिया टीके उपलब्ध है।
- आगे बढ़ रहे थे कि कोरोना ने घेर लिया
हमने 5-7 साल में ही वैक्सीनेशन कवरेज 60% से बढ़ाकर 90% तक पहुंचा दिया। हमने वैक्सीनेशन की स्पीड और दायरा दोनों बढ़ा दिया। बच्चों को कई जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए कई नए टीकों को अभियान का हिस्सा बनाया। हमें हमारे देश के बच्चों की चिंता थी, गरीब की चिंता थी, गरीब के बच्चों की चिंता थी, जिन्हें कभी टीका लग ही नहीं पाया। हम सही तरह से आगे बढ़ रहे थे कि कोरोना वायरस ने हमें घेर लिया। - देश ही नहीं दुनिया के सामने फिर पुरानी आशंकाएं घिरने लगीं कि भारत कैसे इतनी बड़ी आबादी को बचा पाएगा। जब नीयत साफ होती है औऱ नीति स्पष्ट होती है और निरंतर परिश्रम होता है तो नतीजे भी मिलते हैं। हर आशंका को दरकिनार करके भारत में एक साल के भीतर ही एक नहीं बल्कि दो मेड इन इंडिया वैक्सीन लॉन्च कर दी।
- निरंतर परिश्रम करने से ही मिल रही है ये सफलता।
अप्रैल और मई के महीने में ऑक्सीजन की डिमांड अकल्पनीय रूप से बढ़ गई।
भारत में कभी भी इतनी मात्रा में इतनी ऑक्सीजन की जरूरत महसूस नहीं की गई। इस जरूरत को पूरा करने केलिए युद्ध स्तर पर काम किया गया।
सरकार के सभी तंत्र लगे। ऑक्सीजन रेल, एयरफोर्स, नौसेना को लगाया गया। लिक्विड ऑक्सीजन के प्रोडक्शन में 10 गुना ज्यादा बढ़ोतरी बहुत कम समय में हो गई।
दुनिया के हर कोने से जो उपलब्ध हो सकता था, उसे लाया गया। जरूरी दवाओं के प्रोडक्शन को कई गुना बढ़ाया गया। विदेशों में जहां भी दवाइयां उपलब्ध हों, वहां से उन्हें लाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी गई। कोरोना जैसे अदृश्य और रूप बदलने वाले दुश्मन के खिलाफ लड़ाई में सबसे प्रभावी हथियार कोविड प्रोटोकॉल है।
मास्क, दो गज की दूरी और बाकी सावधानियों का पालन ही है।
- वैक्सीनेशन की स्पीड भी बढ़ी है और दायरा भी।
- पहले हमें वक्सीन मिलने में दशकों का समय लग जाता था। जैसे चेचक की वैक्सीन हो या हेपिटाइटिस की हमें उसे भारत में लाने में दशकों का समय लग जाता था।
वैक्सीन सुरक्षा कवच की तरह
लड़ाई में वैक्सीन सुरक्षा कवच की तरह है। पूरी दुनिया में वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां गिनी-चुनी हैं। अभी हमारे पास भारत में बनी वैक्सीन नहीं होती तो भारत जैसे विशाल देश में क्या होता। पिछले 50-60 साल का इतिहास देखेंगे तो पता चलेगा कि भारत को विदेशों से वैक्सीन हासिल करने में दशकों लग जाते थे। वैक्सीन का काम पूरा हो जाता था, तब भी हमारे देश में वैक्सीनेशन का काम शुरू नहीं हो पाता था। पोलियो, स्मॉल पॉक्स, हैपेटाइटिस बी की वैक्सीन के लिए देशवासियों ने दशकों तक इंतजार किया था।- देश ही नहीं दुनिया के सामने फिर पुरानी आशंकाएं घिरने लगीं कि भारत कैसे इतनी बड़ी आबादी को बचा पाएगा। जब नीयत साफ होती है औऱ नीति स्पष्ट होती है और निरंतर परिश्रम होता है तो नतीजे भी मिलते हैं। हर आशंका को दरकिनार करके भारत में एक साल के भीतर ही एक नहीं बल्कि दो मेड इन इंडिया वैक्सीन लॉन्च कर दी।
- वैक्सीनेशन के लिए मिशन मोड में काम
2014 में देशवासियों ने हमें सेवा का अवसर दिया तो भारत में वैक्सीनेशन का कवरेज सिर्फ 60% के आसपास था। हमारी नजर में ये चिंता की बात थी। जिस रफ्तार से भारत का टीकाकरण कार्यक्रम चल रहा था, उस रफ्तार से देश को शत-प्रतिशत टीकाकरण कवरेज हासिल करने में 40 साल लग जाते। हमने इस समस्या के समाधान के लिए मिशन इंद्रधनुष को लॉन्च किया है। हमने तय किया कि इस मिशन के माध्यम से युद्ध स्तर पर वैक्सीनेशन किया जाएगा और देश में जिसको भी वैक्सीनेशन की जरूरत है। उसे वैक्सीन देने का प्रयास होगा। हमने मिशन मोड में काम किया। - हमारे पास भारत में बनी वक्सीन नहीं होती तो देश की स्थिति बूरी होती
- इस लड़ाई में वैक्सिन की अहम भूमिका है।
- कोरोना से लड़ाई में सबसे प्रभावी कोविड प्रोटोकोल है।
- ऑक्सिजन रेल लगाई गई
- बीते सवा साल में ही देश में एक नया हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया है।
- नौसेना को लगाया गया।
- देश में नया इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हुआ।
- वेंटिलेटर से लेकर अस्पताल से लेकर टेस्टिंग लैब का नेटवर्क देश ने तैयार किया।
- बहुतों ने अपनों को खोया