

दीमापुर: नगा स्टूडेंट्स फेडरेशन (एनएसएफ) के तहत कार्यरत इनर लाइन रेगुलेशन कमीशन (आईएलआरसी) ने मंगलवार को पुनः इस बात पर ज़ोर दिया कि नगालैंड में प्रवेश करने या रहने वाले सभी गैर-नगा व्यक्तियों के लिए इनर लाइन परमिट (आईएलपी) के कड़े और सख्त दस्तावेजी नियम बनाए और लागू किए जाएं। यह व्यवस्था राज्य की सांस्कृतिक और सामाजिक सुरक्षा के लिए अनिवार्य मानी जाती है।
आईएलआरसी ने स्पष्ट किया कि किसी भी परिस्थिति में—चाहे वह अल्पकालिक हो या दीर्घकालिक—आईएलपी शुल्क में कोई छूट नहीं दी जानी चाहिए। एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया, “यहां तक कि अल्पकालिक आगंतुकों को भी, बिना किसी अपवाद के एक वैध आईएलपी दस्तावेज प्राप्त करना और अपने साथ रखना आवश्यक होगा।” यह निर्णय राज्य के सांस्कृतिक और सामाजिक ढांचे की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।
आईएलआरसी ने अनुच्छेद 371(ए) के तहत इनर लाइन व्यवस्था की मजबूती पर बल देते हुए कहा कि राज्य सरकार और जिला प्रशासन के साथ मिलकर यह व्यवस्था समान रूप से लागू करने के लिए वे रचनात्मक सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आईएलआरसी ने यह भी कहा कि “हमें आधुनिक और समकालीन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए लचीले ढंग से इस व्यवस्था को अपनाना होगा, लेकिन साथ ही नगा लोगों की भूमि, पहचान और विरासत की सुरक्षा करना इसका मूल उद्देश्य होना चाहिए।”
आईएलआरसी ने बंगाल पूर्वी सीमांत विनियमन (बीईएफआर), 1873 की मूल भावना का हवाला देते हुए कहा कि इनर लाइन परमिट के बजाय ‘इनर लाइन पास’ शब्द का उपयोग अधिक उचित और ऐतिहासिक रूप से सटीक है। 1873 के इस कानूनी दस्तावेज में ‘इनर लाइन पास’ शब्द का प्रयोग किया गया था, इसलिए आईएलआरसी ने सभी जिला प्रशासकों और सरकारी कार्यालयों से आग्रह किया कि वे पुनः इस मूल नामकरण पर लौटें ताकि कानूनी और ऐतिहासिक सटीकता बनी रहे।
आईएलआरसी ने दीमापुर जिला कलेक्टर द्वारा हाल ही में जारी की गई अधिसूचना को स्वीकार किया, जिसमें दीमापुर, चुमौकेदिमा और निउलैंड जिलों में आईएलपी दिशानिर्देशों में संशोधन किए गए हैं। इस अधिसूचना में आवेदकों के स्पष्ट वर्गीकरण, पारदर्शी शुल्क संरचना और कड़े प्रवर्तन प्रावधानों को शामिल किया गया है। आईएलआरसी ने जिला प्रशासन की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि इससे आईएलपी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी।
इनर लाइन परमिट व्यवस्था नगालैंड के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने का एक अहम हिस्सा है, जिसका उद्देश्य नगा जनजाति की सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है। यह व्यवस्था गैर-नगा व्यक्तियों के प्रवेश को नियंत्रित करती है ताकि उनकी भूमि और संसाधनों का शोषण न हो। इस संदर्भ में आईएलआरसी की सख्त मांगें और प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन नगालैंड के लोगों की पहचान और अधिकारों की रक्षा का एक प्रयास है।
नगा स्टूडेंट्स फेडरेशन के इनर लाइन रेगुलेशन कमीशन की इस ताजा मांग से यह स्पष्ट होता है कि वे नगालैंड में इनर लाइन व्यवस्था को सशक्त और प्रभावी बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। वे राज्य सरकार और जिला प्रशासन के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इस व्यवस्था के मूल उद्देश्यों—नगा लोगों की भूमि, पहचान और विरासत की सुरक्षा—को कोई खतरा न हो।