नई दिल्लीः डब्लयूएचओ के मुताबिक दुनियाभर में मंकीपॉक्स के 7000 से ज्यादा केस आ चुके हैं। यह वायरस 75 से ज्यादा देशों में फैल चुका है। हालांकि डब्लयूएचओ ने अभी तक इस बीमारी को महामारी घोषित करने पर कोई फैसला नहीं लिया है। केरल में मंकीपॉक्स के दो मरीज मिलने के बाद भारत में इस बीमारी पर अलर्ट है। केरल के पांच जिलों को हाई अलर्ट पर रखा गया है क्योंकि इन पांच जिलों के लोगों ने संक्रमित मरीज के साथ यात्रा की थी।
मंकीपॉक्स बच्चों के लिए हो सकता है घातक
खास तौर पर बच्चों को इस बीमारी से बचाने के लिए कहा गया है। ऐसा क्यों है ये जानना भी बेहद जरूरी है। दरअसल भारत में साल 1975 तक स्मॉल पॉक्स और चिकन पॉक्स बीमारियां बहुत पाई जाती थीं, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे भारत ने वैक्सीनेशन कार्यक्रम के जरिए इस बीमारी पर कंट्रोल कर लिया। 1975 के आस-पास तक जन्में ज्यादातर लोगों को या तो इसका टीका लगा या फिर उन्हें एक बार ये बीमारी होकर ठीक हो चुकी है।
आईसीएमआर ने जारी किया बयान
आईसीएमआर ने हाल ही में जारी बयान में कहा है कि बच्चों को मंकीपॉक्स से अधिक सावधान रहना होगा, क्योंकि उनको चेचक का टीका नहीं लगा है। बच्चों को ना तो चेचक की बीमारी से परेशान होना पड़ा और न ही उन्हें इसकी वैक्सीन की जरुरत पड़ी। एम्स के मेडिसिन विभाग के एक्सपर्ट डॉ पीयूष रंजन के मुताबिक इसीलिए युवा और बच्चों को इस बीमारी से सावधान रहने की जरुरत है, क्योंकि उनके पास ना तो वैक्सीन वाली इम्युनिटी है और ना ही बीमारी से रिकवर होकर ठीक होने वाली इम्युनिटी।
स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशा निर्देश
स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंकीपॉक्स के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश भी जारी कर दिए हैं। इसके मुताबिक लोगों को फ्लू के लक्षण और बुखार के मरीजों के संपर्क में आने से बचना चाहिए। मरे हुए और दूसरे जंगली जानवरों से भी दूरी बनाएं। एक्सपर्ट्स का भी कहना है कि देश में मंकीपॉक्स का खतरा बढ़ सकता है। खासतौर पर बच्चों को इससे अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। एक डॉक्टर के मुताबिक बच्चों में जूनोटिक बीमारियों को खतरा ज्यादा रहता है। मंकीपॉक्स भी एक जूनोटिक बीमारी है, जो जानवरों से इंसानों में फैलती है और फिर इसका ट्रांसमिशन इंसानों में होने लगता है। बच्चों के लिए मंकीपॉक्स वायरस खतरनाक साबित होने की आशंका है, क्योंकि बच्चों को स्मॉल पॉक्स की वैक्सीन नहीं लगी है। बच्चे हाइजीन का ध्यान भी नहीं रख पाते हैं, अगर वे मंकीपॉक्स से संक्रमित होते हैं तो ये वायरस कई दिनों तक उनमें रह सकता है, जिससे तेज बुखार और शरीर पर लाल दाने निकल सकते हैं। इन दानों से निकलने वाले Fluids से भी दूसरा व्यक्ति संक्रमित हो सकता है।
कैसे नजर आते हैं लक्षण?
आईसीएमआर की ओर से 15 लैब निर्धारित की गई हैं, जिनमें मंकीपॉक्स का टेस्ट होगा। ऐसे में अगर बुखार है और दवा लेकर नहीं उतर रहा है तो मंकीपॉक्स के टेस्ट के लिए सैंपल जरूर दें। मंकीपॉक्स का इंक्यूबेशन 21 दिन का होता है – यानी 21 दिन के आइसोलेशन के बाद ये बीमारी ठीक हो जाती है। संक्रमित होने के 3 दिन बाद इसके लक्षण नजर आते हैं। सबसे पहले बुखार होता है, सिरदर्द हो सकता है। कुछ दिनों बाद चेहरे पर चेचक जैसे दाने निकलने लगते हैं, जो धीरे-धीरे पूरे शरीर पर फैलते हैं और कुछ दिनों बाद झड़ कर गिर जाते हैं। ये वायरस हवा या सांस के जरिए नहीं फैलता है।