
नयी दिल्ली : शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) देशों के पहले मिलिट्री मेडिसिन सम्मेलन का गुरुवार को उद्घाटन करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आतंकवाद के लिए जैविक हथियारों का इस्तेमाल अभी एक बड़ा खतरा है। मैं जैविक-आतंकवाद की समस्या से निपटने की क्षमता विकसित करने के महत्व को रेखांकित करना चाहता हूं। जैविक-आतंकवाद अभी एक वास्तविक खतरा है। यह संक्रामक महामारी की तरह फैलता है और सशस्त्र सेनाओं तथा मेडिकल सेवाओं को इससे निपटने के लिए आगे बढ़कर मोर्चा संभालना होगा। जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद उत्पन्न तनाव के मद्देनजर पाकिस्तान ने सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया। देश के 40 और 30 विदेशी प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया।
राजनाथ ने कहा कि रणक्षेत्र से संबंधित प्रौद्योगिकी में निरंतर बदलाव आ रहा है और इससे नयी-नयी चुनौती पैदा हो रही हैं। नये और गैर परांपरागत युद्धों ने इन चुनौतियों को और जटिल बना दिया है। परमाणु, रसायनिक और जैविक हथियारों के कारण स्थिति निरंतर जटिल हो रही है। सशस्त्र सेनाओं के चिकित्सा से जुड़े विशेषज्ञ संभवतः इन खतरनाक चुनौतियों से निपटने के साजो-सामान से लैस हैं। लड़ाई के दौरान चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने वाली मेडिकल सेवाओं का यह कर्तव्य है कि उनके पास घायलों को जल्द से जल्द जरूरी सहायता उपलब्ध कराने के लिए स्पष्ट, प्रभावशाली और जांचा परखा तरीका होना चाहिए। ये तरीके और रणनीति विभिन्न सैन्य अभियानों को ध्यान में रखकर तैयार किये जाने चाहिए।
क्या हैं जैविक हथियार : विशाक्त कीटाणुओं, विषाणुओं अथवा फफूंद जैसे संक्रमणकारी तत्वों को जैविक हथियार कहा जाता है। इन्हें युद्ध में नरसंहार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।