
नयी दिल्ली : आज के इस भौतिक व उपभोक्तावादी आपाधापी में लोग जहां हर तरह सूचना जानने को बेचैन है वही सबसे तेज दिखने की होड़ में उपभोक्ता को सब कुछ पड़ोस देने का दबाव भी है। इस डिजीटल युग में हर बात सोशल मिडिया से जान लेना तथा उस पर बहस छेड़ देना अपने आप में एक नयी चुनौत बन गयी है। रविवार को एक कार्यक्रम के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एके सीकरी ने कहा कि डिजिटल दौर में न्यायपालिका दबाव में है। उन्होंने कहा कि कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले ही लोग सोशल मीडिया पर यह बहस शुरू कर देते हैं कि फैसला क्या होना चाहिए और यह बात न्यायाधीशों पर प्रभाव डालती है। उल्लेखनीय है कि सीकरी लॉ एसोसिएशन एंड द पैसेफिक कॉन्फ्रेंस के दौरान “डिजिटल युग में प्रेस की आजादी’ विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रेस की आजादी आज नागरिक और मानवाधिकारों को बदल रही है और मीडिया ट्रायल का मौजूदा स्वरूप इसका उदाहरण है। उन्होंने कहा कि मीडिया ट्रायल पहले भी होेता था लेकिन, आज उसके मायने बदल गये है याचिका दायर हो इससे पहले ही लोग उस पर बहस करने लगते है कि फैसला क्या होना चाहिए।
जस्टिस सिकरी ने कहा कि मैं आपको अपने अनुभव के आधार पर यह बताना चाहूंगा कि इसका असर एक जज पर किस तरह पड़ता है तथा वह क्या फैसला करेगा, इस पर पड़ता है।’ हालांकि, उन्होंने कहा- यह सुप्रीम कोर्ट में ज्यादा नहीं होता है। जब तक जज यहां तक पहुंचते हैं, वह काफी परिपक्व हो चुके होते हैं। उन्हें पता रहता है कि किस तरह से केस में फैसला लेना है, फिर चाहे मीडिया में कुछ भी हो रहा हो। जस्टिस सीकरी ने कहा, “कुछ साल पहले यह हमेशा एक सोच रहती थी कि एक बार सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट या किसी भी कोर्ट द्वारा फैसला दे दिया जाता था, तब इसकी आलोचना का पूरा अधिकार है। लेकिन, आज उस न्यायाधीश के खिलाफ भी अपमानजनक और मानहानि वाले बयान दिए जाते हैं। और, अभी भी इस पर बहुत ज्यादा कुछ नहीं कहा जाता।