
मेहता ने कहा कि कोविड-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए देशव्यापी दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर न्यायालय के आदेश पर केंद्र अपना जवाब दे चुका है। पीठ ने कहा ‘केंद्र द्वारा दाखिल जवाब को रिकॉर्ड पर आने दें, उसके बाद गुरुवार को हम इसपर सुनवाई करेंगे।’
दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार करे
शीर्ष अदालत ने पांच नवंबर को केंद्र से कहा था कि वह कोविड-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार करे। न्यायालय ने कुश कालरा की अर्जी पर सुनवाई करते हुए केंद्र को औपचारिक नोटिस जारी किए बिना जवाब मांगा था। पीठ ने कहा था कि जब दिल्ली उच्च न्यायालय में शहर की सरकार मरीजों के मकानों पर पोस्टर नहीं लगाने पर राजी हो सकती है तो इस संबंध में केंद्र सरकार पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश जारी क्यों नहीं कर सकती।
न लगाए पोस्टर
आप सरकार ने तीन नवंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि उसने अपने सभी जिलों को निर्देश दिया है कि वे कोविड-19 मरीजों या होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों के मकानों पर पोस्टर ना लगाएं और पहले से लगे पोस्टरों को भी हटा लें। दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया कि उसके अधिकारियों को कोविड-19 मरीजों से जुड़ी जानकारी उनके पड़ोसियों, आरडब्ल्यूए या व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा करने की भी अनुमति नहीं है। कालरा ने उच्च न्यायालय में दी गई अर्जी में कहा था कि कोविड-19 मरीज के नाम को आरडब्ल्यूए और व्हाट्सऐप ग्रुप पर साझा करने से ना सिर्फ वे कलंकित हो रहे हैं बल्कि बिना वजह लोगों का ध्यान उनपर जा रहा है। अर्जी में कहा गया है कि कोविड-19 मरीजों को निजता दी जानी चाहिए और उन्हें इस बीमारी से उबरने के लिए शांति और लोगों की घूरती हुई नजरों से दूर रखा जाना चाहिए। अर्जी में कहा गया है, लेकिन उन्हें दुनिया की नजरों के सामने लाया जा रहा है। उसमें यह भी दावा किया गया है कि सार्वजनिक रूप से अपमानित और कलंकित होने से बचने के लिए लोग अपनी कोविड-19 जांच कराने से हिचक रहे हैं, और यह सबकुछ मरीजों के मकानों पर पोस्टर चिपकाने का नतीजा है।