
नई दिल्ली : राज्यसभा में मंगलवार को उभयलिंगी या ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा) विधेयक 2019 को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी गई। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज की मुख्यधारा में लाने और उनके विभिन्न अधिकारों की रक्षा करने के मकसद से लाए गए इस विधेयक को लोकसभा गत अगस्त में संसद के पिछले सत्र के दौरान को पारित कर चुकी है। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 10 जुलाई को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा) विधेयक 2019 को मंजूरी दी थी।
विधेयक लाने के पीछे सरकार का यह उद्देश्य
इस विधेयक का लाने के पीछे सरकार का मानना है कि इससे हाशिये पर खड़े इस वर्ग के विरूद्ध भेदभाव और दुर्व्यवहार कम होने के साथ ही समाज की मुख्य धारा में लाने से इन्हें लाभ पहुंचेगा। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि ट्रांसजेंडर एक ऐसा समुदाय है जो सर्वाधिक हाशिये पर है क्योंकि वे पुरूष या स्त्री के लिंग के सामान्य प्रवर्गो में फिट नहीं होते हैं।
विधेयक में दिए गए यह अधिकार
विधेयक में ट्रांसजेंडर व्यक्ति को परिभाषित करने, ट्रांसजेंडर व्यक्ति के विरूद्ध विभेद का निषेध करने तथा ट्रांसजेंडर व्यक्ति को उसी के रूप में मान्यता देने का अधिकार देने का प्रस्ताव किया गया है। इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पहचान प्रमाणपत्र जारी करने के साथ ही जोर दिया गया है कि नियोजन, भर्ती, प्रोन्नति और अन्य संबंधित मुद्दों से संबंधित विषयों में किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के विरूद्ध विभेद नहीं किया जाएगा। प्रत्येक स्थापना में शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने तथा ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद स्थापित करने एवं उपबंधों का उल्लंघन करने पर दंड देने का भी प्रावधान किया गया है।
शीर्ष न्यायालय ने दिया था यह निर्देश
मालूम हो कि शीर्ष न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ के मामले में 15 अप्रैल 2014 को दिए अपने आदेश में अन्य बातों के साथ केंद्र और राज्य सरकारों को उभयलिंगी समुदाय के कल्याण के लिये विभिन्न कदम उठाने का और संविधान के अधीन एवं संसद तथा राज्य विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों के अधीन उनके अधिकारों की सुरक्षा के प्रयोजन में उन्हें तृतीय लिंग के रूप में मानने का निर्देश दिया।