Govardhan Puja 2023: गोवर्धन पूजा के बाद करें ये काम, बनने लगेंगे सारे बिगड़े काम | Sanmarg

Govardhan Puja 2023: गोवर्धन पूजा के बाद करें ये काम, बनने लगेंगे सारे बिगड़े काम

कोलकाता: सनातन धर्म में सभी त्योहारो का अपना अलग महत्व है। दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का महत्व बताया जाता है। देशभर में इसे भी काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। साल 2023 में गोवर्धन पूजा 14 नवंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन शाम के समय घर के आंगन में गाय के गोबर से गिरिराज पर्वत बनाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गोवर्धन पूजा के बाद अगर श्री गिरिराज चालीसा का पाठ किया जाए, तो व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

गिरिराज चालीसा

 

बंदहु वीणा वादिनी, धर गणपति कौ ध्यान ।

महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण ।।

सुमिरन कर सब देवगण, गुरु-पितु बारम्बार ।

वरणों श्री गिरिराज यश, निज मति के अनुसार ।।

जय हो जग बंदित गिरिराजा ।

ब्रज मण्डल के श्री महाराजा ।।

विष्णु रूप तुम हो अवतारी ।

सुन्दरता पर जग बलिहारी ।।

स्वर्ण शिखर अति शोभा पावें ।

सुर-मुनिगण दरशन कुं आवें ।।

शांत कंदरा स्वर्ग समाना ।

जहां तपस्वी धरते ध्याना ।।

द्रोणागिरि के तुम युवराजा ।

भक्तन के साधौ हौ काजा ।।

मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये ।

जोर विनय कर तुम कूं लाये ।।

मुनिवर संग जब ब्रज में आये ।

लखि ब्रजभूमि यहां ठहराये ।।

बिष्णु-धाम गौलोक सुहावन ।

यमुना गोवर्धन वृन्दावन ।।

देव देखि मन में ललचाये ।

बास करन बहु रूप बनाये ।।

कोउ वानर कोंउ मृग के रूपा ।

कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा ।।

आनंद लें गोलोक धाम के ।

परम उपासक रूप नाम के ।।

द्वापर अंत भये अवतारी ।

कृष्णचन्द्र आनंद मुरारी ।।

महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी ।

पूजा करिबे की मन ठानी ।।

ब्रजवासी सब लिये बुलाई ।

गोवर्धन पूजा करवाई ।।

पूजन कूं व्यंजन बनवाये ।

ब्रज-वासी घर घर तें लाये ।।

ग्वाल-बाल मिलि पूजा कीनी ।

सहस्त्र भुजा तुमने कर लीनी ।।

स्वयं प्रकट हो कृष्ण पुजावें ।

माँग-माँग के भोजन पावें ।।

लखि नर-नारी मन हरषावें ।

जै जै जै गिरवर गुण गावें ।।

देवराज मन में रिसियाए ।

नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए ।।

छाया कर ब्रज लियौ बचाई ।

एकऊ बूँद न नीचे आई ।।

सात दिवस भई बरखा भारी ।

थके मेघ भारी जल-धारी ।।

कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे ।

नमो नमो ब्रज के रखवारे ।।

कर अभिमान थके सुरराई ।

क्षमा मांग पुनि अस्तुति गाई ।।

त्राहिमाम मैं शरण तिहारी ।

क्षमा करौ प्रभु चूक हमारी ।।

बार-बार बिनती अति कीनी ।

सात कोस परिकम्मा दीनी ।।

सँग सुरभी ऐरावत लाये ।

हाथ जोड़ कर भेंट गहाये ।।

अभयदान पा इन्द्र सिहाये ।

करि प्रणाम निज लोक सिधाये ।।

जो यह कथा सुनें, चित लावें ।

अन्त समय सुरपति पद पावें ।।

गोवर्धन है नाम तिहारौ ।

करते भक्तन कौ निस्तारौ ।।

जो नर तुम्हरे दर्शन पावें ।

तिनके दु:ख दूर ह्वै जावें ।।

कुण्डन में जो करें आचमन ।

धन्य-धन्य वह मानव जीवन ।।

मानसी गंगा में जो नहावें ।

सीधे स्वर्ग लोक कूं जावें ।।

दूध चढ़ा जो भोग लगावें ।

आधि व्याधि तेहि पास न आवें ।।

जल, फल, तुलसी-पत्र चढ़ावें ।

मनवांछित फल निश्चय पावें ।।

जो नर देत दूध की धारा ।

भरौ रहै ताकौ भंडारा ।।

करें जागरण जो नर कोई ।

दु:ख-दारिद्रय-भय ताहि न होई ।।

श्याम शिलामय निज जन त्राता ।

भुक्ति-मुक्ति सरबस के दाता ।।

पुत्रहीन जो तुमकूं ध्यावै ।

ताकूं पुत्र-प्राप्ति ह्वै जावै ।।

दंडौती परिकम्मा करहीं ।

ते सहजही भवसागर तरहीं ।।

कलि में तुम सम देव न दूजा ।

सुर नर मुनि सब करते पूजा ।।

।।दोहा।।

जो यह चालीसा पढ़े, सुनें शुद्ध चित्त लाय ।

सत्य सत्य यह सत्य है, गिरवर करें सहाय ।।

देवकीनन्दन शरण में, गोवर्धन महाराज ।।

।। श्री गिरिराज चालीसा सम्पूर्ण ।।

 

 

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