नई दिल्ली : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र(इसरो) से चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम का संपर्क टूटने के बाद भी मिशन को 99.5 प्रतिशत सफल माना जा रहा है। साथ ही लैंडर से संपर्क साधने की कोशिशें भी लगातार जारी हैं। वहीं चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सही कक्षा में चांद का चक्कर लगा रहा है। बताया जा रहा है कि यह अगले 1 साल तक चांद के वातावरण और सतह के बारे में जानकारी भेजता रहेगा।
इसरो का कहना है कि वह अगले 10 साल में 6 बड़े मिशन भेज सकती है। फिर से सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश की जाएगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन बडे़ मिशनों से भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश एवं ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री में हिस्सेदारी बढ़ेगी।
चंद्रयान-3 से हो सकती है सॉफ्ट लैंडिंग
यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी के रोसेटा मिशन के सदस्य रह चुके डॉ. चैतन्य गिरी का कहना है कि जब भी कोई स्पेस एजेंसी किसी ग्रह पर मिशन भेजती है तो वह 3 स्टेज में होता है। पहला ऑर्बिटर मिशन होता है। दूसरे में कोशिश होती है कि यान को सही जगह (सतह) पर उतारा जाए और तीसरे में नमूना वापसी मिशन होता है। इसमें वहां की मिट्टी को आप रोबोट की सहायता से पृथ्वी पर लाते हैं।
उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा कि यदि आने वाले समय में विक्रम लैंडर की सफलतापूर्वक लैंडिंग हो जाती है तो चंद्रयान-3 में हम चांद की सतह का मटेरियल अपनी लैबोरेटरीज में लाकर परीक्षण कर सकते हैं।
चंद्रयान-2 से मिला अनुभव अगले अंतरिक्ष कार्यक्रम में मददगार होगा
वहीं इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक रहे डॉ. पीएस गोयल ने कहा कि अगले अंतरिक्ष कार्यक्रम में चंद्रयान-2 से मिला अनुभव सहायक सिद्ध होगा। उन्होंने बताया कि प्रत्येक अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए वैसे तो अलग-अलग मॉड्यूल होते हैं, लेकिन कई चीजें एक दूसरे से जुड़ी होने के कारण जो गणना और तकनीक एक स्पेस मिशन में इस्तेमाल की जाती वह दूसरे में भी काम आती हैं। इसलिए कोई मिशन सफल हो या विफल, उससे दूसरे मिशन में बड़ी सहायता मिलती है।
अंतरिक्ष उद्योग में अभी भारत की 2 प्रतिशत हिस्सेदारी
सूत्रों की माने तो 25 लाख करोड़ रुपए की वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग में अभी भारत की 2 प्रतिशत और अमेरिका की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है। बताया जा रहा है कि साल 2030 तक पूरी दुनिया से करीब 17 हजार छोटे सैटेलाइट भेजे जाएंगे। वहीं इसरो भी छोटे सैटेलाइट के लॉन्च व्हीकल तैयार करने में जुटा है। माना जा रहा है कि ऐसा करने से इस क्षेत्र में देश की हिस्सेदारी बढ़ जाएगी। बता दें कि पिछले 3 साल में इसरो की व्यावसायिक कंपनी एंट्रीक्स कॉर्पोरेशन ने 239 सैटेलाइट छोड़े। जिससे उसे 6289 करोड़ रुपए की आमदनी हुई। इतना ही नहीं दुनिया की सभी सैटेलाइट लॉन्चिंग एजेंसियों की तुलना में इसरो की लॉन्चिंग 10 गुना सस्ती है।