नई दिल्ली : कोरोना वायरस के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था धरासाई हो गई है, लेकिन ऐसे नाजुक समय मे भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने काफी राहत भरे कदम उठाएं हैं। आरबीआई गवर्नर की इस बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के प्रकोप के कारण वित्तीय पारितंत्र के समक्ष उपजी चुनौतियों को दूर करने के लिए अनेक उपायों की घोषणा की है। ये बातें श्रेई इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड के चेयरमैन हेमंत कनेरिया ने कही।
कनेरिया ने कहा कि 3.74 ट्रिलियन रुपये के समावेश के लिए उपायों के अतिरिक्त, ज्यादा आश्वस्त करने वाली बात यह है कि आरबीआई ने अब रिवर्स रेपो रेट को परिचालनगत दर बना दिया है। इस कदम से वाणिज्यिक बैंकों को अब कॉर्पोरेट बांड्स और अपरिवर्तनीय डिबेंचर्स (एनसीडी) में निवेश योग्य अतिरिक्त लिक्विडिटी का प्रयोग करना होगा, लेकिन इसे केवल निवेश दर्जे के कॉर्पोरेट बांड्स और एनसीडी के लिए सीमित करने के कदम पर शायद पुनर्विचार करना पड़े, क्योंकि इस मानदंड से बाजार में अनेक खिलाड़ी अयोग्य हो जायेंगे। सभी बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को उनके ऋणियों के लिए सभी सावधिक ऋणों को चुकाने पर 3 महीने की रोक एक सकारात्मक कदम है, लेकिन यह वैकल्पिक व्यवस्था है और इस नाते इसका कार्यान्वयन ऋणदाता संस्थानों पर छोड़ दिया गया है। इसके कारण किसी भी ऋणी की क्रेडिट हिस्ट्री प्रभावित नहीं होगी, सभी श्रेणियों के ऋणियों के लिए राहत की बात है। इससे कंपनियों को भी अपनी रणनीति फिर से बनाने और आत्म-अवलोकन के लिए वक्त मिलेगा।
21-दिवसीय लॉकडाउन के कारण सम्पूर्ण भारत में आर्थिक गतिविधियां बाधित हो गई हैं, ऐसे में अनेक ऋणियों द्वारा ऋण अदायगी पर असर होगा। आरबीआई के लिए सभी ऋणडाटा संस्थानों को ऋण को एनपीए की श्रेणी में डालने के बदले ऋणों के एकबारगी पुनर्गठन की अनुमति देना व्यावहारिक होगा। लॉकडाउन के बाद ऋणडाटा संस्थानों को भावी नगदी प्रवाह और अन्तर्निहित आस्तियों के मूल्या पर आधारित ऐसे खातों का अपना क्रेडिट मूल्यांकन करने और उसके अनुसार ऋण संरचना में बदलाव करने की अनुमति मिलनी चाहिए। इससे अनेक उपक्रमों और स्वरोजगार में लगे लोगों के कारोबार की निरंतरता में काफी मदद मिलेगी और साथ ही बैंकों को प्रावधान के उद्देश्य से निधि अलग रखने से राहत मिलेगी।
कनेरिया ने कहा कि भारत की दीर्घकालिक स्थिति मजबूत है, घोषित उपायों का लक्ष्य भारतीय वित्तीय व्यवस्था के लचीलेपन की हिफाज़त करना है। सीआरआर में 100 बेसिक अंक की कटौती से बैंकों को भारी फ़ायदा होगा, क्योंकि इससे उन्हें 1। 4 ट्रिलियन रुपये का प्रावधान उपलब्ध होगा। ऋणियों को भी चुकौती पर 3 महीने की रोक के अलावा ब्याज दरों में कमी का फायदा मिलेगा। अब जबकि बैंकों के हाथ में अतिरिक्त लिक्विडिटी उपलब्ध है, यह आवश्यक है कि उस धन को आरबीआई में रिवर्स रेपो विंडो के तहत रखने के बदले कंपनियों के वाणिज्यिक विपत्रों में निवेश किया जाए। आरबीआई इस धन के एनबीएफसी सहित विभिन्न कंपनियों में प्रयोग करने के लिए बैंकों का मार्गदर्शन कर सकता है, जिन्हेंो पैसों की ज़रुरत है। इस तरह की लक्षित लिक्विडिटी प्रवाह से विशेषकर एनबीएफसी के लिए भारत की विकास की रीढ़ माने जाने वाले उद्यमी वर्ग को धन उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी।
गवर्नर का यह सन्देश कि आरबीआई विकास पर ज्यादा बारीकी से निगरानी जारी रखेगा और वह परम्परागत तथा अपरम्परागत दोनों उपायों से हस्तक्षेप के लिए तत्पर है, काफी उत्साह बढ़ाने वाला है और हम आशा करते हैं कि कोविड-19 का मुकाबला करने के लिये इस तरह के और प्रगतिशील कदम उठाये जायेंगे।