
एक तरफ हिन्दू वोट तो दूसरी ओर मुस्लिम वोट
ध्रुवीकरण की कोशिश में जुटी पार्टियां
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : लगभग 10 करोड़ की आबादी वाले पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका ह। 294 विधानसभा सीटों वाले बंगाल में इस बार मुख्य लड़ाई 10 साल से सत्ता में काबिज ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच दिख रही है। वहीं, 34 साल तक बंगाल में शासन करने वाला लेफ्ट मुख्य चुनावी मुकाबले में नजर नहीं आ रहा है।
बंगाल को छूती हैं तीन देशों की सीमाएं
आंतरिक सुरक्षा के नजरिये से पश्चिम बंगाल अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। यह तीन देशों नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से सीमा साझा करता है। बांग्लादेश से लंबी सीमा छूने के कारण सीमावर्ती इलाकों में घुसपैठ की समस्या रहती है। राज्य की 60% से ज्यादा आबादी गांवों में रहती है और जिसकी आमदनी का मुख्य जरिया खेती ही है।
हिन्दू और मुस्लिम वोटों में ध्रुवीकरण
राज्य की कुल जनसंख्या में 27% आबादी मुस्लिम है। यहां करीब 100 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक हैं। 46 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम जनसंख्या 50% से ज्यादा है। एक तरफ मुस्लिम वोटों पर सेंध लगाने की कोशिश में तृणमूल के साथ ही वाम व कांग्रेस गठबंधन जुटा हुआ है तो वहीं दूसरी ओर, हिन्दू वाेटों को भाजपा अपनी ओर करने की कोशिश में है। ऐसा पहली बार होगा कि पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण राज्य की जनता देखेगी।
70.54% है हिन्दू आबादी
पश्चिम बंगाल में लगभग 70.54% आबादी हिन्दुओं की है जिस पर भाजपा की नजरें हैं। मुर्शिदाबाद, उत्तर दिनाजपुर और मालदह के अलावा अन्य सभी स्थानों पर हिन्दू बहुसंख्यक हैं। इसी कारण भाजपा ‘जय श्री राम’ के नारे काे बंगाल में जोरों से बुलंद कर रही है।
वाम व कांग्रेस का आईएसएफ के साथ गठबंधन
इधर, वाममोर्चा और कांग्रेस ने इस बार इंडियन सेक्यूलर फ्रंट (आईएसएफ) के साथ गठबंधन करने का निर्णय लिया है। बताया जा रहा है कि मुस्लिम वोटों को साधने के लिए वाम व कांग्रेस ने इस बार अब्बास सिद्दिकी की पार्टी से हाथ मिलाया है। कुल मिलाकर इस बार पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव काफी अलग होने वाला है। जाति व धर्म की राजनीति इस बार पश्चिम बंगाल में भी हावी होने वाली है और वोटों का ध्रुवीकरण भी होने जा रहा है। ऐसे में अब देखना ये है कि इन सबसे किसे लाभ होता है और किसे नुकसान।