‘मुख्यमंत्री पर विश्वभारती का बयान अपमानजनक,40 वर्षों में ऐसा नहीं हुआ’

शिक्षाविदों के एक वर्ग ने कहा,यह सही नहीं
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर जारी किये गये विश्वभारती विश्वविद्यालय के बयान की कई कई शिक्षाविदों ने निंदा की है और इसे ‘अपमानजनक’ बताया। विश्वविद्यालय की प्रवक्ता महुआ बनर्जी ने एक फरवरी को जारी एक बयान में, सात प्रदर्शनकारी छात्रों और एक संकाय सदस्य के खिलाफ संस्थान की अनुशासनात्मक कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री ने तथ्यों की जांच किये बगैर गैर जिम्मेदाराना बयान दिये। बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए विश्वभारती की पूर्व कुलपति साबुजकाली सेन ने कहा कि मैंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के सपनों के शिक्षण संस्थान के साथ अपने 40 वर्षों के जुड़ाव में ऐसा बयान कभी नहीं देखा था। यह यकीन करना बहुत कष्टप्रद है कि कुलपति (बिद्युत चक्रवर्ती) इस तरह का पत्र लिख सकते हैं।’’ थियेटर जगत से जुड़े कौशिक सेन ने कहा कि बयान ने उन्हें ‘स्थानीय क्लब सदस्यों की दादागिरी’ याद दिला दी है। शिक्षाविद एवं रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति पबित्र सरकार ने कहा कि एक मुख्यमंत्री के खिलाफ इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करना शर्मनाक है। लेखक नरसिंह प्रसाद भादुड़ी ने कहा कि एक कुलपति को बयान में ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। टैगोर परिवार की वंशज सुप्रिया टैगोर ने आरोप लगाया कि कुलपति उन लोगों पर प्रहार करते हैं, जो उनसे अलग विचार रखते हैं।
अभी विश्वविद्यालय कोई और टिप्पणी नहीं करेगा – महुआ
विश्वविद्यालय की प्रवक्ता महुआ बनर्जी को जब यह बताया गया कि कई शिक्षाविदों ने उक्त बयान की आलोचना की है, तब उन्होंने कहा कि अभी विश्वविद्यालय कोई और टिप्पणी नहीं करेगा तथा इस बारे में उसे और कुछ नहीं कहना है।
ये है मामला
मुख्यमंत्री ने 31 जनवरी को बीरभूम की अपनी यात्रा के दौरान कहा था कि छात्रों और संकाय सदस्य के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई अलोकतांत्रिक एवं अवांछित है। इस पर, प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए विश्वभारती ने एक बयान में कहा था, ‘मुख्यमंत्री इस निष्कर्ष पर पहुंचीं हैं कि एक प्राध्यापक को निलंबित कर दिया गया, जो कि झूठ है क्योंकि प्राध्यापक ने विश्वविद्यालय द्वारा अपने खिलाफ दंड की सिफारिश किये जाने के बाद अदालत का रुख किया है और विषय न्यायालय के विचाराधीन है। उन्होंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि अदालत ने दो निलंबित छात्रों को माफी मांगने को कहा है और इसलिए उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी गई।’ बयान में कहा गया था कि ‘एक और छात्र ने माफी मांग ली और उसे सभी कार्रवाई से छूट दे दी गई। पांच छात्रों का माफी मांगना अब भी बाकी है, जबकि पीएचडी की एक छात्रा बगैर किसी निश्चित परिणाम के छह वर्षों से शोध कर रही है। मुख्यमंत्री द्वारा उन सभी को पीड़ित बताना विश्वभारती या असल स्थिति के साथ न्याय नहीं है।’

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