
गोरखा बटालियन की कुल क्षमता 123 जवानों में केवल 4 जवान ही गोरखा समुदाय के
तृणमूल की भेदभाव की राजनीति की सबसे ज्यादा शिकार दार्जिलिंग और कालिम्पोंग के नागरिक बने हैं
दार्जिलिंगः गोरखा समुदाय के प्रति तृणमूल सरकार के सियासी टोकन का भंडाफोड़ हो चुका है। दार्जिलिंग के भाजपा सांसद सह राष्ट्रीय प्रवक्ता राजू बिष्ट ने गोरखा बटालियन के गठन पर अपनी प्रतिक्रिया में यह मंतव्य व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल पुलिस की एक ईकाई के तौर पर गोरखा बटालियन के गठन की घोषणा की थी। इससे आम नागरिकों और खासकर गोरखा समुदाय के बीच एक भरोसा जगा था। अब देखने में आ रहा है कि गोरखा बटालियन की कुल क्षमता 123 जवानों में केवल 4 जवान की गोरखा समुदाय से आते हैं।
उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस उत्तर बंगाल के गोरखा समुदाय सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के कल्याण के प्रति गंभीर नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले 10 सालों से तृणमूल कांग्रेस ने क्षेत्र के नागरिकों को सुविधाओं से वंचित रखकर भेदभाव की राजनीति की है। तृणमूल अपनी इस नीति पर लगातार अमल कर रही है।
सांसद राजू बिष्ट ने कहा कि तृणमूल की भेदभाव की राजनीति की सबसे ज्यादा शिकार दार्जिलिंग और कालिम्पोंग के नागरिक हुए हैं। दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, कर्सियांग, मिरिक, बिजनबाड़ी, अलगरा, गोरुबथान, माटीगाड़ा, खोरीबाड़ी, फांसीदेवा और सिलीगुड़ी के सरकारी कार्यालयों में हजारों पद रिक्त पड़े हैं। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार हमारे क्षेत्र में रिटायर्ड सरकारी अधिकारियों के प्रतिस्थापन भर्ती में भी विफल रही है। शायद सरकार ऐसा करना ही नहीं चाहती। इसके कारण दार्जिलिंग क्षेत्र के सरकारी कार्यालयों के कर्मचारी ओवरवर्किंग, ओवरस्ट्रेस्ड और अंडरपेड है।
उन्होंने कहा कि जीटीए के कर्मचारी भी स्थायी नहीं हैं। वे बंगाल सरकार के कर्मचारियों की तुलना में बहुत कम वेतन पर काम करने में मजबूर हैं। जीटीए में सेवारत हमारे भाई बहनों ने अपना जीवनकाल संविदा कर्मचारी के रूप में ही गुजार दिया। इससे हमारे प्रतिभाशाली और शिक्षित युवाओं का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। उन्होंने कहा कि युवाओं को अपनी जमीन पर रोजगार नहीं मिले और उसे बाहर जाना पड़े, यह सिस्टम अस्वीकार्य है।
सांसद राजू बिष्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में पूरे देश के साथ साथ बंगाल भी समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ता लेकिन यहां की सरकार की असहयोग की नीति के कारण बंगाल विकास से वंचित रह गया।