बंगाल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएसकेएम में मरीजों की दशा दयनीय

बेड नहीं मिलने के कारण अस्पताल परिसर में ही दिन गुजारने को हैं मजबूर
मेले जैसी भीड़ में उदास इधर-उधर बैठे रहते हैं हजारों लोग
नेहा सिंह
कोलकाता : बंगाल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएसकेएम में एक अनार और 100 बीमार वाली कहावत ठीक बैठती है। यहां के विभागों में सीट की कमी के कारण मरीजों की दशा दयनीय है। अस्पताल प्रबंधन की ओर से अधिक मरीजों की संख्या का रोना रोया जा रहा है लेकिन यहां के भीतर की व्यवस्था हो या फिर एक विभाग से दूसरे विभाग में कोऑर्डिनेशन का मामला हो या फिर अन्य मरीजों से जुड़े मामले में सिस्टम फेल होता दिखाई दे रहा है। अस्पताल के इंट्री गेट से लेकर भीतर तक मरीजों व हाथ में पर्ची लिये इधर से उधर भटक रहे मरीजों के परिजनों को देखा जा सकता है। मेन गेट से अंदर का रास्ता 16 फीट होने के बावजूद लोगों की भीड़ के कारण यह रास्ता एक संकरी गली जैसा हो जाता है जहां डॉक्टरों की कार हो या फिर एम्बुलेंस या फिर अन्य दवाइयों या मशीनों को अंदर ले जाने वाले वाहन की स्पीड स्लो हो जाती है तथा कई बार इन्हें जाम में फंसना पड़ जाता है। इमरजेंसी से लेकर मेन बिल्डिंग तथा वुडबर्न वार्ड जाने के रास्तों पर मरीजों व उनके परिजनों की इतनी अधिक भीड़ रहती है कि लगता है कि यह पुराने जमाने का कोई रेलवे स्टेशन हो क्योंकि अब रेलवे स्टेशनों में भी प्रतिक्षा घर होने लगा है तथा वहां भी इस अस्पताल से कम संख्या में लोग रहते हैं।
फेयर प्राइस मेडिसिन शॉप तो हैं लेकिन अधिकतर दवाइयों को बाहर से खरीदने को मजबूर हैं लोग
यहां पर इलाज करा रहे अधिकतर गरीब तथा दूर दराज से आये मरीजों के परिजनों का कहना है कि फेयर प्राइस मे​डिसिन शॉप तो हैं लेकिन यहां अधिकतर दवाइयों का कोई अता पता नहीं हैं। हमें बाहर से इन दवाइयों को खरीदना पड़ता है। सरकारी अस्पताल में ओपीडी में ​दिखाने के बाद जब दवाइयों को खरीदने के लिए मरीजों के परिजन यहां आते हैं तो उन्हें हताश और निराश होना पड़ता है।
टेस्ट आज करवाना हो तो डेट मिलता है 2 महीने बाद का
एसएसकेएम अस्पताल में चिकित्सा करवाने पहुंचे अधिकतर लोगों का कहना है ​कि घंटों लाइन लगाकर डॉक्टरों को दिखा भी दिया जाए तो जब टेस्ट करवाने की बारी आती है तो अधिकतर टेस्ट के लिए जब अस्पताल प्रबंधन से संपर्क किया जाता है तो उसकी तारीख एक से 2 महीने बाद की मिलती है। इसके साथ ही कुछ टेस्टों के लिए तो 3 महीने से भी ज्यादा का टाइम दे दिया जाता है।
क्या कहना है अस्पताल प्रबंधन का
इस बारे में अस्पताल के मेडिकल प्रो. डॉ. पीयूष कुमार राय ने बताया कि बंगाल के सभी जिलों से रेफर किये गये मरीज यहां आते हैं। प्रतिदिन इमरजेंसी व नये व पुराने मरीजों की कुल संख्या 12000 से 14000 के बीच रहती है। ऐसे में हमारे यहां लगभग 45 डिपार्टमेंट हैं, सभी मरीजों को देखने व उन्हें एडमिट करने की कोशिश की जाती है लेकिन यह संभव नहीं हो पाता। अस्पताल प्रबंधन की ओर से यथासंभव कोशिश रहती है कि सभी को ट्रीटमेंट मिले लेकिन अस्पताल में बेडों की सीमित संख्या के कारण सिर्फ उन्हीं को एडमिशन मिल पाता है, जिन्हें सबसे ज्यादा इसकी जरूरत है। रही बात टेस्ट की तो ब्लड टेस्ट को कराने में अधिक समय नहीं लगता है।

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