कोलकाता : केंद्र द्वारा पड़ोसी देश से आए और गुजरात में बसे लोगों के एक वर्ग को नागरिकता देने का फैसला करने के कुछ दिनों बाद बंगाल में मतुआ समुदाय के सदस्यों ने कहा कि अगर उन्हें समान लाभ प्रदान नहीं किया गया तो वे भाजपा पर भरोसा करना बंद कर देंगे। समुदाय के नेताओं ने कहा कि अगर नागरिकता की उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो वे सड़कों पर उतरेंगे। अखिल भारतीय मतुआ महासंघ के वरिष्ठ नेता मुकुट मणि अधिकारी ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि हमें भी जल्द ही नागरिकता दी जाएगी, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो मतुआ लोग विरोध स्वरूप सड़क पर उतरेंगे।’ राज्य की अनुसूचित जाति की आबादी का एक बड़ा हिस्सा मतुआ धार्मिक उत्पीड़न के कारण 1950 के दशक से बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल में पलायन कर रहे थे। मार्च 1971 तक आने वाले सभी लोग 1955 के नागरिकता अधिनियम के अनुसार भारत के कानूनी नागरिक हैं। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, 1971 के बाद आने वालों को सात साल के प्रवास के बाद नागरिक बनाने के लिए आवेदन करना होता है। केंद्र ने हाल ही में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान छोड़कर आए उन हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने का फैसला किया, जिन्हें गुजरात के दो जिलों में 1955 के नागरिकता अधिनियम के तहत बसाया गया था। मतुआ लोगों को हालांकि 2019 के संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) के तहत नागरिकता का वादा किया गया है। अधिकारी ने कहा, ‘हमें इस बात की जानकारी है कि गुजरात में 1955 के कानून के तहत नागरिकता दी जा रही है। हम चाहते हैं कि सीएए 2019 को यथाशीघ्र लागू किया जाए।’
सीएए जल्द लागू न हुआ तो मतुआ समुदाय भाजपा पर भरोसा करना छोड़ देगा : सामुदायिक नेता
Visited 123 times, 1 visit(s) today