मोदीखाना से लेकर बीरभूम के ‘बादशाह’ तक केष्टो का सफर

रातोंरात नहीं बदली अनुव्रत की किस्मत, करते थे मछली व्यवसाय
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : अनुव्रत मंडल। बीरभूम में नाम ही काफी रहा है। जिले में जिसकी तुती बोलती आयी और वे जो कहते थे उसे टालना आसान नहीं था। केस्टो के नाम से मशहूर अनुव्रत की रातोंरात नहीं बदली किस्मत। ना ही अचानक जिले में बादशाह कहलाने लगे। काफी लंबी है उनके अर्स से फर्श तक की कहानी। एक समय था जब अनुव्रत मंडल मोदीखाना यानी किराने की दुकान संभाला था। राजनीति में आने से पहले आठवीं पास अनुव्रत ने अपने पिता की किराने की दुकान संभालना शुरू की थी। अनुव्रत के पिता कृपासिन्धु मंडल की दुकान थी। यह भी कहा जाता है कि उनकी एक ग्रिल फैक्ट्री थी। तीन भाईयों में से अनुव्रत मंझले हैं। अनुब्रत अब बोलपुर के निचुपट्टी क्षेत्र के वार्ड नंबर 15 में रहते हैं हालांकि उनका पैतृक घर नानूर थाने के हटसेरंडी गांव में था जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया। यह भी जाना गया है कि कुछ दिनों तक उन्होंने मछली का व्यवसाय भी किया है। हालांकि कुछ लोगों ने इससे इनकार भी किया। अनुव्रत जब 30 साल के थे, तब उन्हें पड़ोस की लड़की ‘छबी’ से प्यार हो गया। बाद में उनसे ही शादी हुई। अनुव्रत की एक मात्र कन्या संतान है।
अनुव्रत तो ऐसे मिला बीरभूम का कमान
बात करें राजनीतिक जीवन की तो शुरूआत में अनुव्रत मंडल कांग्रेस करते थे। 1998 में, जब तृणमूल कांग्रेस की स्थापना हुई, तो दिवंगत डॉक्टर सुशोभन बनर्जी बीरभूम जिला तृणमूल अध्यक्ष बने। इसके अलावा अनुब्रत मंडल को जिला युवा तृणमूल अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। सुशोभन के बाद आशीष बनर्जी जिलाध्यक्ष बने। इसके बाद अशीष जब चेयरमैन बने तब 2009 में अनुव्रत मंडल जिलाध्यक्ष बने। बीरभूम का दायित्व लेने के बाद वामपंथियों के लाल गढ़ कहे जाने वाले बीरभूम में अपना दमखम दिखाना शुरू किया। 2011 में जब तृणमूल राज्य में सत्ता में आयी तो पार्टी में केष्टो का प्रभाव भी बढ़ा।
कभी नहीं बने विधायक व मंत्री, फिर भी…
अनुव्रत मंडल कभी भी विधायक व मंत्री नहीं बने। इसके बाद भी पार्टी के अहम नेताओं में अनुव्रत मंडल का नाम आता रहा है। अनुव्रत के करीबियों ने पहले भी कहा है कि उन्होंने कभी भी मंत्री बनने की इच्छा नहीं जतायी। मंत्री नहीं होने बावजूद जिला के बाहर भी उनका प्रभाव बना रहा है।
ऐसे जुड़ता गया विवादों में नाम
एक दो नहीं बल्कि कई मामलों में विपक्ष के निशाने पर रहे है अनुव्रत। पंचायत चुनाव, लोकसभा चुनाव में कई तरह से विपक्ष ने उन पर आरोप भी लगाया। वोट के बाद हिंसा के कथित आरोपों में भी अनुव्रत का नाम आया था। पशु तस्करी से लेकर कोयला स्कैम में भी नाम आया। केंद्रीय जांच एजेंसी ने अनुव्रत को कई बार बुलाया मगर उन्होंने शारीरिक अस्वस्थ्ता का हवाला देते हुए पेश नहीं हुए। आखिरकार गुरुवार को सीबीआई की टीम उनके घर पहुंची और उन्हें गिरफ्तार किया है।

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