कैसे दिए जाते हैं उनकी संस्तुति के बगैर लाइसेंस
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : हाई कोर्ट ने फायर लाइसेंसिंग प्रक्रिया के बाबत राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। इस मुद्दे पर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवायी करने के बाद चीफ जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज के डिविजन बेंच ने सोमवार को यह आदेश दिया। इसमें आरोप लगाया गया है कि फायर लाइसेंसिंग एजेंसी की संस्तुति के बगैर ही फायर लाइसेंस दिए जा रहे हैं।
एडवोकेट सिद्धार्थ शंकर मंडल ने यह जानकारी देते हुए बताया कि फायर लाइसेंसिंग कमेटी का गठन एक वैधानिक बाध्यता है। उन्होंने बताया कि कानून के मुताबिक फायर लाइसेंसिंग एजेंसी में सेवानिवृत्त इंजीनियर, उसी पद का एक सरकारी अफसर और एक टेक्निशियन को शामिल किया जाता है। यह एजेंसी अग्नि निरोधक उपाय और आग से बचाव के लिए किए गए उपाय की समीक्षा करने के बाद अपनी संस्तुति देती है और इसके बाद फायर विभाग की तरफ से फायर लाइसेंस दिया जाता है। इस एजेंसी के अलावा कोई अन्य फायर लाइसेंस दिए जाने की संस्तुति नहीं कर सकता है। इस पीआईएल में आरोप लगाया गया है कि राज्य में इस तरह की कोई एजेंसी ही नहीं है। इसके बाद ही डिविजन बेंच ने फायर विभाग के महानिदेशक को इस बाबत एफिडेविट की शक्ल में एक रिपोर्ट दिए जाने का आदेश दिया। इस पीआईएल में आमरी, दीघा और बर्दवान के एक सरकारी अस्पताल में आग लगने की घटनाओं का हवाला देते हुए कहा गया है कि बदइंतजामी के कारण ही आग लगने की घटनाएं घटी हैं।
फायर लाइसेंसिंग एजेंसी के बाबत हाई कोर्ट का सवाल
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