फोरेंसिक रिपोर्ट : सही या गलत, फैसला थर्ड जज का

एनडीपीएस एक्ट में जमानत, दो जज एकराय नहीं
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : एनडीपीएस एक्ट के ‌तहत गिरफ्तार अभियुक्त की जमानत याचिका पर सुनवायी के दौरान ऐसा विरल ही होता है जब डिविजन बेंच के दो जज एकराय नहीं हो पाते हैं। पर इस बार ऐसा ही हुआ है। जब ऐसा होता है तो मामला तीसरे जज, यानी थर्ड जज, को सौंपा जाता है। थर्ड जज के रूप में जस्टिस जयमाल्य बागची ने अभियुक्त की जमानत याचिका खारिज कर दी।
सरकार की तरफ से इस मामले में पैरवी कर रहे एडवोकेट संजय वर्द्धन ने यह जानकारी दी। कोलकाता पुलिस के नार्कोटिक सेल ने असफाक अहमद सहित चार लोगों को हेरोइन के साथ आनन्दपुर थाना क्षेत्र से गिरफ्तार किया था। असफाक के पास से 256 ग्राम और बाकी तीनों के पास से 60 ग्राम यानी कुल 316 ग्राम हेरोइन बरामद की गई थी। सिंगल बेंच में जमानत याचिका खारिज होने के बाद असफाक ने जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस तीर्थंकर घोष के डिविजन बेंच में अपील दायर कर दी। राज्य सरकार के फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट में कहा गया था कि यह हेरोइन नहीं है पर यह नहीं बताया था कि यह क्या है। इसे दोबारा जांच के लिए सीएफएसएल में भेजा गया तो वहां की रिपोर्ट में इसे हेरोइन करार दिया गया। एनडीपीएस एक्ट में सैंपल को दोबारा जांच के लिए भेजे जाने का प्रावधान नहीं है। इसी आधार पर जस्टिस टंडन ने जमानत याचिका को मंजूरी दे दी, पर जस्टिस घोष ने इसे खारिज कर दिया। अब प्रथा के अनुसार इसे थर्ड जज के रूप में जस्टिस जयमाल्य बागची के पास फैसले के लिए भेजा गया। जस्टिस बागची ने थाने सिंह के मामले में सु्प्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि ऐसा प्रावधान नहीं है पर विशेष परिस्थितियों में किया जा सकता है और सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में एक गाइड लाइन भी बनायी है।

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