
सरकार और चुनाव आयोग को जवाब देने में लगे करीब 45 मिनट
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : नगर निगमों का चुनाव टाले जाने को लेकर दायर पीआईएल पर सुनवायी करते हुए हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव ने एक छोटा सा सवाल पूछ डाला। इसका जवाब देने में राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग को करीब 45 मिनट लग गए। सवाल था कि चुनाव टालने का अधिकार किसके पास है, राज्य सरकार या चुनाव आयोग। चीफ जस्टिस जवाब से संतुष्ट नहीं हो पाएं।
चीफ जस्टिस ने राज्य चुनाव आयोग से सवाल किया कि मान लीजिए अगर चुनाव टालना ही पड़ा तो क्या आप फैसला लेंगे या फिर राज्य सरकार के पास जाना पड़ेगा। जवाब में चुनाव आयोग के एडवोकेट ने कहा कि चुनाव टाले जाने का कोई कानून ही नहीं है। चीफ जस्टिस ने कहा कि मेरा सवाल बहुत सीधा है और अगर जवाब हां में है तो हां कहिए और ना में है तो ना कहिए। इसके बाद चीफ जस्टिस ने राज्य सरकार की तरफ मुखातिब होते हुए सवाल किया कि मौजूदा स्थिति के बारे में आप का क्या आकलन है। क्या इसमें चुनाव कराया जाए, स्थगित कर दिया जाए या फिर टाल दिया जाए। राज्य सरकार ने कहा कि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। चीफ जस्टिस ने फिर पलट सवाल किया कि आप के पास तो सारे रिकार्ड हैं और हम तो सिर्फ आपका स्टैंड जानना चाहते हैं। यह सवाल भी उलझा ही रह गया कि चुनाव की तारीख कौन तय करता है। राज्य सरकार या चुनाव आयोग। दोनों ही एक दूसरे पर जिम्मेदारी टालते रहे तो चीफ जस्टिस ने कहा कि 27 साल पहले कानून बना था और आज भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। बहरहाल चुनाव आयोग की तरफ से कहा गया कि डिजेस्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत चुनाव टाला जा सकता है और यह अधिकार राज्य सरकार के पास है। इसके जवाब में चीफ जस्टिस ने उन्हें संविधान की धारा 243 जेड ए की याद दिलाते हुए कहा कि चुनाव आयोग तो एक स्वायतशासी संस्था है।