
मुख्य सचिव के आचरण को लेकर की तल्ख टिप्पणी
चुनावी परिणाम आने के बाद खुली है राह इलेक्शन पिटिशन की
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : भवानीपुर विधानसभा का चुनाव अपने निर्धारित समय पर होगा। इस बाबत दायर पीआईएल पर मंगलवार को अपना फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज के डिविजन बेंच ने इस विधानसभा की चुनावी प्रक्रिया में दखल देने से इनकार कर दिया। अलबत्ता राज्य सरकार के मुख्य सचिव के आचरण पर हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है।
डिविजन बेंच ने कहा है कि निर्वाचन आयोग द्वारा चार सितंबर को एक विज्ञप्ति जारी की गई थी और इसके तहत भवानीपुर विधानसभा केंद्र का चुनाव 30 सितंबर को होना है। डिविजन बेंच ने कहा है कि हमें यह मुनासिब नहीं लगता है कि इस मुकाम पर इस विधानसभा की चुनावी प्रक्रिया में दखल दें। पर मुख्य सचिव द्वारा निर्वाचन आयोग को लिखे गए पत्र पर सख्त एतराज जताते हैं। यहां गौरतलब है कि एडवोकेट अयन बनर्जी की तरफ से चुनाव के खिलाफ नहीं बल्कि चुनावी प्रक्रिया को लेकर पीआईएल दायर की गई थी।
मुख्य सचिव ने खुद को राजनीतिक दल का सेवक बना लिया
डिविजन बेंच ने कहा है कि मुख्य सचिव द्वारा निर्वाचन आयोग को लिखे गए पत्र में जो कहा गया है वह हकीकत के उलट है। पत्र में कहा गया है कि कोविड की परिस्थिति नियंत्रण में है पर दूसरी तरफ प्रतिबंधों की मियाद बढ़ा कर तीस सितंबर कर दी गई है। बाढ़ की स्थिति के बारे में भी मुख्य सचिव ने गलतबयानी की है। मुख्य सचिव का आचरण बेहद गलत है क्योंकि उन्होंने खुद को एक जनसेवक बनाये रखने के बजाए सत्तारूढ़ राजनीतिक दल का सेवक बना लिया। उन्होंने लिखा है कि अगर भवानीपुर विधानसभा केंद्र का चुनाव नहीं कराया जाता है, जहां से प्रतिवादी नंबर पांच (ममता बनर्जी) चुनाव लड़ना चाहती हैं, तो एक संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा। एक व्यक्ति के चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने से संवैधानिक संकट कैसे खड़ा हो सकता है। मुख्य सचिव को कैसे पता चल गया कि ममता बनर्जी वहां से चुनाव लड़ना चाहती हैं। वे न तो किसी दल के प्रवक्ता हैं और न ही चुनाव अधिकारी हैं। मुख्य सचिव एक जनसेवक हैं और सत्ता में चाहे कोई भी क्यों न हो उन्हें अपनी जिम्मेदारी कानून के तहत निभानी है। कौन सत्ता में आएगा या नहीं आएगा यह तय करना उनकी जिम्मेदारी नहीं है।
खुली रखी है राह इलेक्शन पिटिशन की
डिविजन बेंच ने स्पष्ट कर दिया है कि उसने इस बात पर विचार नहीं किया है कि चुनाव परिणाम आने के बाद कोई इलेक्शन पिटिशन ग्रहण योग्य होगा या नहीं। कोई भी पराजित उम्मीदवार कानून के दायरे में इलेक्शन पिटिशन दाखिल कर सकता है। डिविजन बेंच ने यह सवाल भी उठाया है कि क्या कोई विजयी विधायक अपनी सीट किसी और के लिए खाली कर सकता है। इस पर जो सरकारी धन खर्च होगा वह तो आम लोगों की जेब से ही जाएगा। इस मुद्दे पर 17 नवंबर को होने वाली सुनवायी में विचार किया जाएगा।