
25 साल का बकाया वेतन ब्याज के साथ देने का आदेश
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : ‘कौन कहता है कि आसमां पे सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’: शकुंतला घोष ने गजल के इस कतरे को नहीं पढ़ा होगा, पर उनका जज्बा इसके पैमाने पर खरा साबित होता है। करीब 36 साल पहले उनके संघर्ष का पहला पन्ना लिखा गया था और आज यानी पांच मई को इस गाथा का अंतिम पन्ना लिख गया। हाई कोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने आदेश दिया है कि उनका 25 साल का बकाया वेतन दस फीसदी ब्याज के साथ दिया जाए।
जस्टिस गंगोपाध्याय ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा : ‘यह बुजुर्ग महिला आंखों में आंसू लिए मेरे कोर्ट में आई थी और आज मैं उन्हें वापस नहीं भेज सकता हूं। बुजुर्ग नागरिकों को सम्मान देना चाहिए’। जब सरकारी एडवोकेट ने इस मामले की सुनवायी टालने की अपील की तो उन्होंने कहा कि एक माह तक इंतजार किया अब और नहीं कर सकता। इसके बाद आदेश सुना दिया कि भुगतान आठ सप्ताह के अंदर करना पड़ेगा और साथ ही स्कूल से कहा कि टालने की कोशिश का नतीजा भारी पड़ेगा। वरिष्ठ एडवोकेट रविलाल मैत्रा ने एडवोकेट अरुण माइती के साथ श्यामली घोष के लिए बगैर किसी फीस के मुकदमा लड़ा है। हावड़ा के श्यामपुर हाई स्कूल में 1979 में श्यामली घोष की सहायक अध्यापिका के पद पर नियुक्ति हुई थी। तत्कालीन हेडमास्टर को श्यामली घोष की सूरत रास नहीं आई तो 1982 में उनके स्कूल में प्रवेश पर रोक लगा दी गई। श्यामली घोष को न तो कोई नोटिस दी गई थी, न ही कोई चार्जशीट दी गई थी और न ही उनकी सेवा समाप्त की गई थी। जब कोई सूरत बाकी नहीं रह गई तो उन्होंने 1986 में हाई कोर्ट में रिट दायर कर दी। ओफ यूं आहिस्तगी से पांव रखने के अंदाज में यह मामला 2013 में हाई कोर्ट में सुनवायी के लिए आया। जस्टिस अशोक कुमार दासअधिकारी ने 2013 में 29 नवंबर को मामले की सुनवायी के बाद आदेश दिया कि श्यामली घोष को दस फीसदी ब्याज के साथ ग्रेच्युटी और उनके बकाये वेतन का भुगतान दो सप्ताह के अंदर किया जाए। यहां गौरतलब है कि इसी दौरान 2005 में वे सेवानिवृत्त भी हो गईं। अब एक मामूली सी अध्यापिका के सामने अगर सरकार झुक जाए तो उसका रुतबा भला कैसे रह जाएगा। इसलिए उनकी ग्रेच्युटी का भुगतान कर दिया गया और पेंशन चालू कर दी गई, लेकिन बकाया वेतन का भुगतान नहीं किया गया। लिहाजा 2013 से लड़ाई के दूसरे दौर की शुरुआत हुई जिसका समापन 2022 में पांच मई को हुआ है। जब मामला जस्टिस गंगोपाध्याय के कोर्ट में तो सीनियर एडवोकेट रविलाल मैत्रा ने मदद का हाथ बढ़ा दिया था। उम्र की बोझ के कारण श्यामली घोष का शरीर झुक गया है, आवाज की बुलंदी गायब हो गई है पर जज्बा बना हुआ है। अदालत का शुक्रिया अदा करते हुए कहती हैं कि काश इतने वर्षों तक बच्चों को बांग्ला पढ़ाने का मौका मिला होता।