
2021 की ऐतिहासिक जीत के बाद बदला तृणमूल का चेहरा
बंगाल से आगे छाप नहीं छोड़ सकती तृणमूल, बदल दी लोगों की यह सोच
सोनू ओझा
कोलकाता : तृणमूल का चेहरा यानी ममता बनर्जी। पूरे राज्य की दीदी या कहें पूरे देश की दीदी बन चुकीं ममता बनर्जी अब बंगाल नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति का मजबूत चेहरा बन चुकी हैं। यह पहचान ममता बनर्जी के लिए कोई नयी बात नहीं है लेकिन जिस दबदबे के साथ ममता बनर्जी का नाम राजनीति में आज उभरा है उसके पीछे एक ही चेहरा है अभिषेक बंद्योपाध्याय। मीडिया के कैमरों से बचते-बचाते अभिषेक ने तृणमूल का कायापलट इस तरीके से किया है जिसे देखकर हर कोई हैरान है। 2021 में 213 सीटों की जीत का परचम भी अगर अभिषेक के नाम का लहराये तो गलत न होगा क्योंकि इस चुनाव की रणनीति के पीछे अभिषेक का ही दिमाग रहा है जिसमें बेशक प्रशांत किशोर ने साथ दिया है। बंगाल की जीत के साथ ही अभिषेक ने मानो अपना गोल सेट कर लिया और चल पड़े तृणमूल को राष्ट्रीय राजनीति का चेहरा बनाने जो उनके लिए एक बड़ी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। यह शुरुआत अभिषेक ने पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनने के साथ की जो दूर तलक जाने वाली है। अभिषेक का टार्गेट सिर्फ बंगाल जीतना नहीं बल्कि तृणमूल को राष्ट्रीय राजनीति का खिलाड़ी बनाना है जिसकी शुरुआत अभिषेक ने उस दिन की जब वह पहली बार मुकुल रॉय की बीमार पत्नी को देखने अस्पताल पहुंचे थे। उस वक्त मुकुल भाजपा के कद्दावर नेताओं में से एक थे।
भाजपा के बड़े चेहरों को तृणमूल में एंट्री
बंगाल में भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर तृणमूल के सामने आयी है। लाजमी है तृणमूल का टार्गेट भी भाजपा को खोखला करना है जिसमें अभिषेक सफल होते नजर आ रहे हैं। उदाहरण के तौर पर मुकुल रॉय, बाबुल सुप्रियो जैसे भाजपा के हेवीवेट नेता हैं जो अब तृणमूल खेमे में आ चुके है। अभिषेक ने दावा किया है कि 25 भाजपा के बड़े नेताओं की कतार लगी है जो अगले तीन महीनों में कुर्सी बदल करेंगे। कांग्रेस की सुष्मिता देव को तृणमूल में लाकर राज्यसभा की सीट देना भी इसी रणनीति का हिस्सा रहा है।
पार्टी धूमिल न हो इसलिए लागू की एक व्यक्ति एक पद
विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने तृणमूल पर चौतरफा आक्रमण करते हुए अपनी जमीन बंगाल में तैयार की। इस दौरान तृणमूल के कुछ नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। ऐसे आरोपों से बचाने और पारदर्शिता से काम करने का मौका मिले इस मुद्दे को प्राथमिकता देते हुए तृणमूल में एक व्यक्ति एक पद की शुरुआत की गयी।
नये युवा चेहरों को मिली जगह
पार्टी के अलग-अलग पोस्ट पर नये व युवा चेहरों को जगह दी गयी। पहला नाम खुद अभिषेक का है जिन्हें तृणमूल का राष्ट्रीय महासचिव पद दिया गया। इसी तरह तृणमूल युवा कांग्रेस की कमान सायोनी घोष को सौंपी गयी। श्रमिक मोर्चा के लिए ऋतुब्रत बनर्जी को चुना गया। जिलों में भी जिलाध्यक्ष के पद पर कई युवा व नये चेहरे लाये गये।
बाकी राज्य बने अभिषेक के टार्गेट
बंगाल की जीत के बाद अभिषेक बंद्योपाध्याय ने डंके की चोट पर कहा कि वे राष्ट्रीय राजनीति में पैर रखने जा रहे हैं। इतना ही नहीं अभिषेक ने कहा कि जहां-जहां भाजपा है वहां तृणमूल जरूर चुनाव लड़ेगी और भाजपा को हराकर दिखाएगी। इसके लिए तृणमूल उत्तर प्रदेश, बिहार, त्रिपुरा, असम, मेघालय, गुजरात, पंजाब, गोवा में संगठन का विस्तार करने लगी है।
अभिषेक का बड़ा चैलेंज त्रिपुरा, गोवा
अभिषेक बंद्योपाध्याय के लिए सबसे बड़ा चैलेंज इस वक्त त्रिपुरा और गोवा है। इन दोनों ही राज्य में अभिषेक का फोकस है। त्रिपुरा में तो अभिषेक का आना-जाना बराबर लगा हुआ है। हाल ही में गोवा में पार्टी ने संगठन को मजबूत करने के लिए वहां के पूर्व सीएम लुइजिन्हो फलेरियो को अपना चेहरा बनाया है।