सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : यूक्रेन के टर्नोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी की फर्स्ट ईयर की मेडिकल स्टूडेंट आयुषी अग्रवाल गत बुधवार की देर रात वाॅर जोन से निकलकर पूर्व बर्दवान के उलहास में स्थित अपने घर पहुंची जिसके बाद उसके परिवारवालों ने राहत की सांस ली है। इस सफर को अब आयुषी कभी याद करना नहीं चाहती है, लेकिन इसके बावजूद येे सफर उसके जेहन में हमेशा के लिए रह जाएगा। अपने सफर को याद करते हुए आयुषी सन्मार्ग से कहती है, ‘युद्ध की शुरुआत के पहले दो दिन हमने अपनी यूनिवर्सिटी के बंकरों में बिताये और ये उम्मीद लगाये बैठे थे कि चीजें ठीक होंगी। हालांकि जल्द ही हमें एहसास हुआ कि अब कुछ ठीक होने वाला नहीं है। ऐसे में 25 फरवरी की देर रात 2 बजे हमारे ग्रुप को लेकर टर्नोपिल यूनिवर्सिटी से बस रवाना हुई। हमने बस के चारों तरह भारतीय झण्डे और इंडियन स्टूडेंट्स ऑन बोर्ड के साइनेज लगाये थे। इस दिन बस ने हमें यूक्रेन सीमा से लगभग 50 कि.मी. की दूरी पर उतार दिया क्योंकि उसके बाद सीमा तक लम्बा ट्रैफिक जाम था और बस के जाने का कोई रास्ता नहीं था। यहां से हमारे कष्टों की बस शुरुआत हुई और अपने भारी सामानों के साथ 50 कि.मी. की यात्रा हमें पैदल ही तय करनी थी। चारों तरफ से बमों की साफ आवाजें सुनायी दे रही थीं, ऐसे में अपने सामानों और गर्म कपड़ों के साथ हमने अपनी यात्रा शुरू की और माइनस 4 डिग्री तापमान में हम अगले दिन दोपहर 2.30 बजे के करीब यूक्रेन की सीमा पर पहुंचे। हर पल हमारे लिए मुश्किल भरा था और खारकिव व कीव को जलते हुए हम देख रहे थे। मेरे पिता सुशील अग्रवाल और मां स्वीटी अग्रवाल भी काफी आतंक में थे और मुझे फोन पर ढांढस भी बंधा रहे थे। सीमा पर पहुंचने के बाद हमारे पास काफी कम भोजन और पानी बचा था। यूक्रेन की सेना द्वारा उन स्टूडेंट्स को पीटा जा रहा था जो उनकी बात नहीं सुन रहे थे और सीमा का गेट खोलने के लिए कह रहे थे। पोलैंड में घुसने के बाद इमिग्रेशन ऑफिस तक जाने के लिए भी हमें और 7 कि.मी. चलना पड़ा। पूरी रात हमने खुले आकाश के नीचे सड़क पर बितायी और वह भी माइनस तापमान में। इसके बाद भारतीय दूतावास ने हमसे संपर्क किया और भोजन देने के साथ होटल में ले गये। इसके बाद वापस आने में हमारी पूरी सहायता की। फिर दिल्ली से कोलकाता लाने में पश्चिम बंगाल सरकार ने हमारी मदद की।’
माइनस तापमान में 50 कि.मी. पैदल चलकर यूक्रेन बॉर्डर पहुंची आयुषी
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