
कानून और जजबात के बीच टकराव की एक अनोखी कहानी
हावड़ा के सलकिया की रहनेवाली है मिम्मी
जितेंद्र सिंह
कोलकाता : यशोदा ने कृष्ण को पाला था। वासुदेव ने कृष्ण को उन्हें सौंप दिया था। इस तरह यशोदा पालक मां के रूप में एक किंवदंती बन गईं। यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है, पर जूली राय इत्तफाकन यशोदा बन गई हैं। उस जमाने में कानून की किताबें नहीं हुआ करती थीं। पर इस जमाने की यशोदा की राह में कानून की किताब रोड़ा बन गई है। एक बच्ची ने उन्हें मां मान लिया और मां-बेटी का यह बंधन इतना मजबूत बन गया है कि अदालत भी बेबस नजर आने लगी है। हाई कोर्ट के जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस अजय कुमार मुखर्जी ने दो बार मिम्मी (बदला हुआ नाम) के मन की थाह लेेने की कोशिश की पर नाकाम रहे। कोर्ट ने पिता, मिम्मी और जूली राय को बुलाया था। पर पिता को देखते ही वह दोनों बार वह चीख चीख कर रोते हुए जूली राय से लिपट गई। दरअसल कानून में न तो पालक मां का कॉलम है और न ही उसे बच्ची को सौंपे जाने का प्रावधान है। बच्ची के पिता तुषार कांति घोष ने उसे अपनी हिफाजत में लेने के लिए हाई कोर्ट में रिट दायर कर रखी है। कानून की किताब में जजबात का कोई कॉलम नहीं है इसलिए कोर्ट भी मजबूर है। पर जज भी तो इंसान और संवेदनशील होते हैं। बच्ची के करुण क्रंदन ने उनके हाथों को बांध रखा है। मिम्मी अपनी मां के साथ अपनी नानी के पास हावड़ा के सलकिया में रहती थी। नानी के घर में ही बच्ची का जन्म हुआ था। जन्म के छह माह बाद ही मां ने खुदकुशी कर ली और जूली ने उसे अपनी गोद में थाम लिया। बाद में नानी ने भी खुदकुशी कर ली और अब सिर्फ जूली ही रह गई। जज मिम्मी के मन को समझना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) को आदेश दिया है कि वह शिशु मनोवैज्ञानिक की मौजूदगी में मिम्मी से अधिक से अधिक बात करें। कोर्ट मिम्मी और उसके पिता के बीच एक सेतु तैयार करना चाहता है ताकि पिता और बेटी के बीच एक संबंध बन सके। कोर्ट ने जूली राय को आदेश दिया है कि वे सप्ताह में तीन बार मिम्मी को सीडब्ल्यूसी के दफ्तर में ले जाएंगी और उसके पिता भी वहां एक घंटा तक मौजूद रहेंगे। पर मुश्किल तो यह है कि जब मिम्मी की उम्र महज छह माह थी तब से उसने सिर्फ जूली राय को ही देखा है और उन्हीं के गोद में पली है। अब भला उसे जूली से कोई कैसे अलग करे। नोवापाड़ा के इच्छापुर के तुषार कांति दास का हावड़ा के सलकिया की एक युवती से करीब पांच साल पहले ब्याह हुआ था। मिम्मी के जन्म से पहले ही वह उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए अपने मायके लौट आयी थी। अदालत में मामला चला और जमानत पर रिहा होने के बाद उसने मिम्मी को अपनी हिफाजत में लेने के लिए हाई कोर्ट में रिट दायर कर दी है। पर मुश्किल तो यह है कि बाप-बेटी के बीच के पांच वर्षों के इस फासले को पाटना मुश्किल साबित हो रहा है।