
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : तृणमूल कांग्रेस के लिए उत्तर बंगाल कमजोर रहा है। इसका मुख्य कारण रहा है वहां के लोगों तक संगठन का नहीं पहुंच पाना। इस बार भी वहीं गलती दोहरायी गयी। इसका नतीजा है कि सिलीगुड़ी जहां भारी संख्या में हिन्दीभाषी रहते हैं, वहां तृणमूल को हार का सामना करना पड़ा। यहां तक कि माकपा के दिग्गज नेता अशोक भट्टाचार्य को भी परास्त होना पड़ा। चुनाव के बाद भी सुधार नहीं दिख रहा है। एक उदहारण के तौर बता दें कि अभी हाल में सिलीगुड़ी नगर निगम में प्रशासक बनाया गया और वहां भी हिन्दीभाषी का दरकिनार किया गया जबकि सिलीगुड़ी में हिन्दीभाषियों की जनसंख्या बंगाली और नेपाली से भी अधिक है। ऐसी ही स्थिति दूसरी जगहों पर भी देखी जा रही है। राजनीतिक दिग्गजों का कहना है कि जब तक इसको नहीं बदला जायेगा तब तक वहां के लोगों से संगठन का जुड़ना मुश्किल है। वहीं इसके ठीक उलट भाजपा ने उन लोगों को जिम्मेदारी दी जो लोग वहां के वोट बैंक माने जाते हैं। एक उदहारण के तौर पर वहां के स्थानीय प्रवीण अग्रवाल को भाजपा ने अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है। ऐसे ही भाजपा के लिइ कई उदहारण है। सूत्रों की माने तो अब तृणमूल कांग्रेस उत्तर बंगाल की रणनीति में जुट गयी है। अभी हाल में घर वापसी करने वाले वरिष्ठ नेता मुकुल राय के अनुभवों का तृणमूल कांग्रेस फायदा उठा सकती है। इन सभी की रूप -रेखा तैयार भी होने लगी है।
2024 के लिए कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती तृणमूल
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा काे भारी सफलता मिली। भाजपा की 18 सीटों पर जीत हासिल हुई। खासकर नार्थ बंगाल में भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और तृणमूल को नार्थ बंगाल में निराशा हाथ लगी थी। 2021 के विधानसभा चुनाव में भले ही भाजपा अपने टार्गेट पूरा नहीं कर पायी लेकिन 3 सीटों से 77 सीटें तक पहुंच गयी। नार्थ बंगाल से तृणमूल को उम्मीद से कम सीटें ही हासिल हुई। अब तृणमूल कांग्रेस 2024 लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने में जुट गयी है। खासकर नार्थ बंगाल के सभी सीटों पर तृणमूल अपना टार्गेट लेकर चल रही है। माना जा रहा है इस टार्गेट को पूरा करने में मुकुल राय अपने अनुभवों को पार्टी के काम में लगायेंगे।