सूप और दउरा बनाने वालों का छलका दर्द

जी तोड़ मेहनत करने के बावजूद नहीं होती भरण-पोषण लायक आमदनी
सूप और दउरा बनाने वालों का छलका दर्द
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सांकतोड़िया : लोक आस्था का महापर्व छठ शनिवार से नहाय खाय के साथ आरंभ हो जाएगा। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व को लेकर श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह है। छठ पूजा में शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। छठ महापर्व पर सबसे खास चीज है, पूजा में उपयोग किये जाने वाले सूप और दउरा। इन दोनों का छठ महापर्व में विशेष महत्व है। शुद्ध होकर श्रद्धालु दउरा और सूप सिर पर रखकर छठ घाट तक पहुंचते हैं। सूप और दउरा में फल प्रसाद रखकर भगवान सूर्य को छठ व्रती अर्घ्य देते हैं, जिससे श्रद्धालुओं की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सूप और दउरा बांस से बनते हैं। इस तरह का काम करने वाले लोगों का कहना है कि छठ पूजा से पहले इसमें व्यवहार होने वाले सूप और दउरा बनाने का वालों का काम बढ़ जाता है लेकिन उनकी आमदनी नहीं बढ़ती है।

छठ के दौरान करते हैं दिन-रात काम

पुरुलिया जिला के बेड़ो बस्ती के रहने वाले मोहली समाज की महिला और पुरुष सिर्फ सूप और दउरा बनाने का काम करते हैं। यहां बसे सैकड़ों परिवार सालभर यही काम करते हैं। वहीं जब इनलोगों से सन्मार्ग ने बातचीत की तो इन परिवारों का दर्द छलककर सामने आ गया। यहां की निशा देवी ने बताया कि साल भर सूप और दउरा बनाने का काम करते हैं। छठ महापर्व पर सूप और दउरा की काफी अच्छा मांग रहती है। बाजार से दुकानदार खरीदकर ले जाते हैं लेकिन सामान्य दिनों में इसकी बिक्री काफी कम रहती है। छठ महापर्व पर अच्छी बिक्री होती है लेकिन मेहनत के अनुसार मेहनताना नहीं मिलता है। बांस खरीदकर लाते हैं, उसे छिलते हैं फिर सुखाते हैं। उसके बाद दउरा और सूप बनाने का काम करते हैं।

पीढ़ी दर पीढ़ी कर रहे हैं काम

बुजुर्ग महिला शांति देवी ने बताया कि बांस को काटकर टोटो से लाते हैं। दो दिनों तक बांस में ही मेहनत करनी पड़ती है। बुजुर्ग महिला का कहना है कि पीढ़ी दर पीढ़ी वे लोग यही काम करते आ रहे हैं। उस वक्त से ही सूप और दउरा बना रहे हैं। वहीं सुनील मोहली ने बताया कि सूप और दउरा का बाजार में सही से रेट नहीं मिल पाता है। सूप का 25 रुपया और दउरा का 100 रुपये मिलता है। एक पीस बांस की कीमत 150 रुपये है। एक बांस से 4 पीस सूप तैयार होता है जबकि दउरा 2 पीस ही बन पाता है। इसी काम से ही घर का भरण-पोषण चलता है। कोई फायदा नहीं होता लेकिन परिवार चलाने के लिए काम करना पड़ता है कारण उनलोगों के लिए रोजगार का और कोई बढ़िया साधन नहीं है।

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