

बांकुड़ा : मंदिर नगरी विष्णुपुर में लगभग 300 वर्षों से चली आ रही एक अनूठी और प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते हुए, इस वर्ष दीपावली अमावस्या के ठीक 48 दिन बाद 'बड़ी काली मां' की प्रतिमा का विसर्जन स्थानीय रघुनाथ सायर (तालाब) में किया गया। यह वह क्षण था जब आनंद और उत्सव का माहौल भावुकता में बदल गया। मां को अंतिम विदाई देने के लिए विशाल विसर्जन जुलूस में हजारों श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। सामान्यतः जहां अधिकांश स्थानों पर काली पूजा के तुरंत बाद प्रतिमा विसर्जित कर दी जाती है, वहीं विष्णुपुर नगर पालिका के वार्ड संख्या 17 स्थित बड़ा कालीतला में यह प्राचीन रीति है कि दीपावली के बाद आने वाली अगली अमावस्या के उपरांत ही शुभ दिन देखकर मां काली की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। भक्तों ने नाचते-गाते और जयकारे लगाते हुए मां की विशाल शोभायात्रा निकाली, जो लगभग 8 से 10 घंटे तक चली। मध्यरात्रि में यह विशाल जुलूस स्थानीय रघुनाथ सायर पहुंचा, जहां पुरोहितों ने विधि-विधान के साथ मातृ प्रतिमा को विसर्जित किया।
साल भर मां की पवित्र कलश की होगी पूजा
मंदिर के पुरोहित अमरनाथ मुखोपाध्याय ने इस परंपरा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि काली पूजा के बाद डेढ़ महीने तक मां की मूर्ति की विधिवत पूजा मंदिर में होती है। विसर्जन हो जाने के बाद भी, साल भर भक्तों के लिए मां की पूजा 'घट' (पवित्र कलश) के रूप में लगातार जारी रहती है। यही कारण है कि बड़ी काली मां के मंदिर में वर्षभर भक्तों का आवागमन बना रहता है।
इस बार 48 दिन साथ रहीं मां
विष्णुपुर नगरपालिका अध्यक्ष व पूजा कमेटी सदस्य गौतम गोस्वामी ने कहा कि यह विष्णुपुर की सदियों पुरानी पहचान है। बड़ी काली मंदिर में मां की पूजा दीपावली की अमावस्या से अगली अमावस्या तक होती है। अगली अमावस्या के बाद, पुरोहित सोमवार या शुक्रवार का शुभ दिन विसर्जन के लिए तय करते हैं। इस बार मां हम सभी भक्तों के साथ करीब 48 दिनों तक रहीं। श्रद्धा और भारी मन के साथ गत रात्रि मां को विदाई दी गई।