लागत और जिम्मेदारी जैसे मुद्दों पर अटकी बात
फ्रांसीसी कंपनी 60% टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को तैयार
लेकिन भारत 75% टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर अड़ा
नयी दिल्ली : रक्षा मंत्रालय ने राफेल लड़ाकू विमानों को लेकर वायुसेना के प्रस्ताव को ‘अधूरा’ करार देने से 114 लड़ाकू विमानों का सौदा उधर में लटक गया है। बताया जाता है कि वायुसेना ने इससे पहले जो 36 राफेल फाइटर जेट को लेकर सरकार-से-सरकार स्तर पर सौदे के तहत खरीदारी की थी, भारत अब उस तरह का सौदा नहीं करना चाहता है। यह सौदा पूरी तरह से अलग होगा जिसमें उत्पादन, लागत और जिम्मेदारी जैसे मुद्दों पर नये सिरे से बातचीत करनी होगी।
दसॉल्ट एविएशन बढ़ा रही समस्याएं
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार दसॉल्ट एविएशन, जिससे भारत ने पहले 36 राफेल फाइटर जेट खरीदे थे और हालिया समय में भारत ने राफेल मरीने के लिए भी दसॉल्ट के साथ सौदा किया है, अब 114 राफेल के लिए कई बिंदुओं पर परेशान कर रही है। नये सौदे में सरकार का मकसद भारत की आत्मनिर्भरता के अनुसार ज्यादा से ज्यादा विमानों का उत्पादन भारत में ही करना है। इसके तहत पहले इस बात पर विचार किया जायेगा कि कितने विमान फ्लाई-अवे कंडीशन में आयेंगे और कितने भारत में, किसी स्थानीय पार्टनर के सहयोग से निर्मित होंगे। इसके लिए दसॉल्ट से नये सिरे से बात करनी होगी।
स्वदेशी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है भारत
बताया जाता है कि इस बार की प्रमुख मांग है कि स्थानीय सामग्री और स्वदेशी हिस्सेदारी सिर्फ 10-15 प्रतिशत तक सीमित न रहे बल्कि इसे 75 प्रतिशत या उससे ज्यादा तक बढ़ाया जाये। इसका मकसद भारतीय रक्षा क्षेत्र की कंपनियों, सरकारी और निजी दोनों, को इस बड़े सौदे का हिस्सा बनाना है। इसके अलावा दसॉल्ट ने हैदराबाद में रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) केंद्र बनाने की इच्छा जतायी है, जिससे विमानों की लंबे समय तक सेवा और भारतीय कर्मियों के कौशल विकास में मदद मिलेगी।
रक्षा मंत्रालय और दसॉल्ट के बीच दो बड़े मतभेद
सूत्रों ने भी कहा कि भारतीय वायुसेना ने पहले व्यापक परीक्षण के बाद राफेल के साथ साथ ‘यूरोफाइटर टायफून’ को भी अपनी आखिरी सूची में रखा था जबकि अमेरिकी F-16 और F-18, स्वीडिश ग्रिपेन या रूसी विमानों पर विचार नहीं किया गया था लेकिन बातचीत आगे नहीं बढ़ पायी क्योंकि रक्षा मंत्रालय और दसॉल्ट के बीच दो बड़े मतभेद थे। पहला अगर ये विमान भारत में किसी सरकारी कंपनी द्वारा बनाये जाने थे, तो देरी की जिम्मेदारी कौन लेगा? दूसरा, विमानों के उत्पादन की वास्तविक लागत पर भी काफी ज्यादा मतभेद थे।
टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर नहीं बन पा रही बात!
इसके अलावा अधिकारियों ने ये भी बताया है कि राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी 60 प्रतिशत तक टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने के लिए तो तैयार है, लेकिन भारत 75 प्रतिशत से कम टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए तैयार नहीं है। कुछ डिफेंस एक्सपर्ट्स का कहना है कि दसॉल्ट को लगता है कि अगर भारत को 75 प्रतिशत से ज्यादा टेक्नोलॉजी ट्रांसफर किया गया तो भारत के पास वो क्षमता है कि कुछ सालों में ही वो राफेल को टक्कर देने लायक नये विमानों का निर्माण कर सकता है, जिससे राफेल का मार्केट खराब हो जायेगा। इसीलिए सवाल ये हैं कि क्या राफेल सौदा रूक गया है? और अगर वाकई ऐसा है तो भारतीय वायुसेना के लिए समस्या का समधान कैसे होगा?
वायुसेना और 12 लड़ाकू स्क्वाड्रन चाहिए
वर्तमान में वायुसेना के पास लड़ाकू स्क्वाड्रन की संख्या 30 तक पहुंच चुकी है जबकि हर हाल में संख्या 42 स्क्वार्डर्न होनी चाहिए। भारत के पास जो मौजूदा लड़ाकू जेट राफेल, मिराज, जगुआर, MiG-29 और Su-30MKI, इनमें से सुखोई और राफेल ही एडवांस जेट हैं। तेजस की डिलीवरी शुरू हो गयी है लेकिन 180 तेजस विमानों की डिलीवरी अगले 10 सालों में हो जायेगी, कहना मुश्किल है। इसीलिए वायुसेना ने जल्द से जल्द 114 राफेल खरीदना चाहती है ताकि वायुसेना में कम होते विमानों की समस्या से निजात पाया जा सके।