फांसी या जहर का इंजेक्शन : चल रही बहस 
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केंद्र ने कोर्ट में कहा : फांसी के विकल्प के तौर पर घातक इंजेक्शन का समर्थन नहीं

अमेरिका के 50 में से 49 राज्यों ने घातक इंजेक्शन को अपना लिया

नयी दिल्ली : केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मौत की सजा पाये दोषियों को फांसी के बजाय सजा के तौर पर घातक इंजेक्शन लगाने का विकल्प देना ‘बहुत व्यावहारिक’ नहीं हो सकता। केंद्र की इस टिप्पणी के बाद न्यायालय ने कहा कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं है।

फांसी देना क्रूर और बर्बर

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता का पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें फांसी की सजा पाये दोषियों को फांसी देने के मौजूदा तरीके को कानून से हटाये जाने का अनुरोध किया गया था। याची वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि दोषी कैदी को कम से कम यह विकल्प दिया जाना चाहिए कि वह फांसी चाहता है या घातक इंजेक्शन। मल्होत्रा ने कहा कि सबसे अच्छा तरीका घातक इंजेक्शन है क्योंकि अमेरिका के 50 में से 49 राज्यों ने घातक इंजेक्शन को अपना लिया है। उन्होंने कहा कि घातक इंजेक्शन लगाकर मौत की सजा देना त्वरित, मानवीय और सभ्य है जबकि फांसी देना क्रूर और बर्बर है, क्योंकि इसमें शव लगभग 40 मिनट तक रस्सी पर लटका रहता है।

अगली सुनवाई 11 नवंबर को

पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील को सुझाव दिया कि वह मौत की सजा पाये दोषी को विकल्प उपलब्ध कराने के संबंध में मल्होत्रा के प्रस्ताव पर सरकार को सलाह दें। केंद्र के वकील ने कहा कि इस बात पर भी ध्यान दिया गया है कि यह विकल्प देना बहुत व्यावहारिक नहीं हो सकता है। पीठ ने कहा कि समस्या यह है कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं है... समय के साथ चीजें बदल गयी हैं। केंद्र के वकील ने दलील दी कि जवाबी हलफनामे में कहा गया है कि यह एक नीतिगत फैसला है और सरकार इस पर फैसला ले सकती है। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 11 नवंबर तय की।

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