भईलो गाती हुई बालिकाएं  
सिलीगुड़ी

समय के साथ नहीं बदला तिहार का महत्व, भईलो-देउसी आज भी जारी

सिलीगुड़ी: सिलीगुड़ी को अक्सर लोग मिनी भारत भी कहते हैं क्योंकि यहां हर जाति व समुदाय के लोग रहते हैं और 12 महीनें यहां उत्सव का माहौल बना रहता है | चारों तरफ पर्वतों से घिरे होने के कारण भी सिलीगुड़ी शहर अपनी खास पहचान रखता है | बता दे कि पूरे देश में दीपावली का त्यौहार मनाया गया | सिलीगुड़ी शहर भी दीपों और लाइटों की रौशनी से जगमगा उठा | शहर वासियों ने मां लक्ष्मी के स्वागत में विशेष तैयारियां भी की थी | वहीं गोरखा समुदाय में दीपावली यानी तिहार काफी महत्वपूर्ण है | क्योंकि इस त्यौहार में गोरखा समुदाय देवता, पशु, भाई बहन के रिश्ते को समर्पित करते हैं और चारों तरफ रोशनी के साथ बुराई पर अच्छाई के जीत के प्रतीक को मानते हुए दीपोत्सव मनाते हैं | काग तिहार से शुरू होने वाले त्यौहार में कुकुर तिहार , गाय तिहार, गोरू तिहार और भाई तिहार मनाया जाता है | तिहार नेपाली व गोरखा संस्कृति और परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह त्यौहार लोगों को एक साथ लाता है, भाईचारे को बढ़ावा देता है। तिहार में बालिका, युवती , महिलाओं द्वारा भईलो और बालक युवक व पुरषों द्वारा देउसी खेल कर विशेष आशिस दिया जाता है जो राजा बलि और भगवान वामन की कहानी को दर्शाता है | मान्यता है कि तिहार में राजा बलि अपने राज्य को देखने आते है |

पौराणिक कथा अनुसार राजा बलि, जो भक्त प्रह्लाद के पौत्र थे, एक अत्यंत शक्तिशाली और दानवीर राजा थे। उन्होंने अपनी शक्ति से स्वर्ग पर भी अधिकार कर लिया था, जिससे देवतागण चिंतित हो गए और मदद के लिए भगवान विष्णु के पास गए और देवताओं की प्रार्थना पर, भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण किया। इधर दैत्यराज बलि ने अपने गुरु शुक्रचार्य और मुनियो के साथ दीर्घकाल तक चलने वाले यज्ञ का आयोजन किया। बलि के इस महायज्ञ में ब्रह्मचारी वामन जी भी गए। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपने तपो बल से वामन के रूप में अवतरित भगवान विष्णु को पहचान लिया। उन्होंने बलि को बताया की तुम्हारी राजलक्ष्मी का अपरहण करने भगवान विष्णु वामनरूपी अवतार में आये है। गुरुदेव की बातो को सुन कर राजा बलि ने कहा हे गुरुदेव आप क्यों धर्म विरोधी वचन कह रहे है, भगवान विष्णु स्वयं मुझ से दान मांगने आये है इस से बढ़कर और क्या हो सकता है। मैं तो केवल भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए यह यज्ञ कर रहा हूं।

तभी वामनजी बलि के यज्ञशाला में पधारे, उन्हें देख राजा बलि अपने दोनों हाथ जोड़ के उनके सामने खड़े हो गए और कहा, हे प्रभु मुझे अपनी सेवा का अवसर दीजिये।त ब वामन भगवान ने उनसे तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान विष्णु की लीला समझ गए और उन्होंने राजा बलि को दान देने से मना किया। लेकिन फिर भी बलि ने भूमि दान के संकल्प के लिया |

भगवान विष्णु ने विशाल रूप धारण कर पहले एक पग पूरी धरती को नाप लिया तथा अपने दूसरे पग में उन्होंने पुरे स्वर्गलोक को नापा। जब तीसरे पग के रखने के लिए कोई जगह नही बची तो बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। तब तीसरे पग के लिए अपने आप को समर्पित करते हुए राजा बलि ने अपना सर उनके पग के निचे रख लिया। वामन भगवान के तीसरा पग रखते ही बलि पाताल लोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता को देख वामनरूप भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल का राजा बना दिया और इस तरह भगवान विष्णु ने इंद्र को स्वर्गलोक सौंपा | कथा के आधार पर, भईलो देउसी गाने वाले खुद को राजा बलि के दूत मानते हैं और घर-घर जाकर लोगों को आशीर्वाद देते हैं, जिसके बदले में उन्हें उपहार और दान मिलता है। यह परंपरा 'देउसी-भैलो' गीतों और नृत्यों के माध्यम से आज भी जीवित है। विशेष कर भाई टिका मो बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है | इस दिन बहनें अपने भाइयों के लिए दुआ मांगती है उनके सफल जीवन और लंबी उम्र की कामना करती है |

नवग्रह मंदिर के पुरोहित धुर्व उपाध्याय और श्रीमती माया छेत्री से संपर्क किया तो उन्होंने तिहार को लेकर कई प्रकार की जानकारियां दी |

पंडित ध्रुव गुरु उपाध्याय जो दुर्गागुड़ी के निवासी हैं उन्होंने कहा कि तिहार नेपाली और गोरखाओं का महत्वपूर्ण त्यौहार है और पौराणिक कथाओं में भी इस त्यौहार को सर्वोच्च माना गया है | एक दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए बहन यमुना ने अपने भाई का आदर सत्कार किया | उन्हें तिलक लगाकर भोजन कराया जिसे यमराज प्रसन्न हुए तब उन्होंने यमुना को वरदान दिया कि, आज के दिन जो भी बहन अपने भाई के घर जाकर तिलक करवाएगा उसे दीर्घायु की प्राप्ति होगी और इसी कहानी के मान्यता अनुसार ही भाई टिका का त्यौहार मनाया जाता है |

माया छेत्री जो एक समाज सेवी के अलावा धार्मिक कार्यों में भी काफी रुचि रखती हैं उन्होंने बताया कि तिहार विशेष कर दीपोत्सव के अलावा लक्ष्मी पूजा, गाय गौरू पूजा और भाई टिका को विशेष महत्व देता है | क्योंकि जहां घर में धन की देवी मां लक्ष्मी का आगमन होता है जिसको लेकर विशेष तैयारियां की जाती है तो गाय को माता का दर्जा दिया गया है और वहीं गोरु किसानों को खेत जोतने में मदद करता है | इनकों पूजने के साथ भाई टिका का त्यौहार मनाया जाता है | साल भर भाई कहीं भी रहे लेकिन भाई टिका के दिन वह जरूर अपनी बहन के घर पहुंचता है और टीका लगवाता है | बहने भाई के स्वागत में व्रत रखती है उनकी पूजा के बाद की अन्न को ग्रहण करती है इस दिन कई तरह के व्यंजन भी भाई के लिए पकाए जाते है |

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